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________________ बृहत्कल्प-छेदसूत्र २६७ बृहत्कल्पछेदसूत्रस्य विषयानुक्रमः उद्देशकः-१, मूलं-७ पर्यन्तः सुमो लाग: १८ उद्देशकः-१ मूलं-८ (आरभ्य....) उद्देशकः-३ मूलं ९६ पर्यन्तः शुमो माग: १८ मूलाङ्कः विषयः पृष्ठाङ्क: मूलाङ्कः विषयः |९७-११० उद्देशकः-३ ३ उद्देशकः-५ ९७ | तिकर्म 1-१४६ | मैथुनप्रतिसेवन-प्रकृत 1 -९८ अन्तरगृहस्थानं 1-१४७ अधिकरण 1-१०० अन्तरगृहाख्यानं -१५१/ संस्तृतनिर्विचिकित्स 1-१०३ शय्यासंस्तारकः -१५२ उद्गार प्रकृत |-१०८ अवग्रहः -१५३ | आहारविधिः |-१०९ सेनाप्रकत -१५४ | पानकविधिः -११० अवग्रहप्रमाणं -१५६ इन्द्रियसूत्र उद्देशकः-४ |-१५७ | एकाकी -१११ | अनुद्घातिक -१५८ अचेलं |-११२ | पाराञ्चिक -१५९/ अपात्रः -११३|अनवस्थाप्य -१६०/ व्यत्सृष्टकायः -११५ | प्रव्राजना-आदि -१६१/आतापना 1-११६ | वाचनाप्रकृत -१७७ | स्थानायत आदि सूत्राणि 1-११८ | संज्ञाप्य-प्रकृत -१९३ | आकुंचनपट्ट-आदि निषेधः 1-१२० ग्लान-प्रकृत -१९५ / व्यवहार प्रकृत 1-१२२ | कालक्षेत्रातिक्रान्त -१९६ पुलाक प्रकृत 1-१२३ | अनेषणीयं | उद्देशकः-६ १-१२४ | कल्पस्थिताकल्पस्थित -१९६] वचन प्रकृत 1-१३३ गणान्तरोपसम्पत् -१९७| प्रस्तार प्रकृत 1-१३४ | विष्वग्भवन -२०१ / कण्टकादि उद्धरणम् 1-१३५ अधिकरणप्रकृत -२०४ दुर्ग-प्रकृत १-१३६ | परिहारिक प्रकृत |-२१३ क्षिप्तचित्तादि सम्बन्धी 1-१३८ | महानदी प्रकृत -२१४ परिमन्थ प्रकत 1-१४२/ उपाश्रय विधिप्रकृत -२१५ | कल्प स्थितिः ३४४ + - + Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003371
Book TitleAgam Sutra Satik 35 Bruhatkalpa ChhedSutra 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages1500
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 35, & agam_bruhatkalpa
File Size29 MB
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