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________________ प्रतिपत्तिः -४, ४४९ कालस्तावदेवैकेन्द्रियस्यान्तरं, त्रसकायस्थितिकालश्चयथोक्तप्रमाणः, तथाचवक्ष्यति-'तसकाइए णं भंते !' तसकायत्ति कालतो केवचिरं होइ ?, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जावासममहियाई। द्वित्रिचतुष्पञ्चेन्द्रियसूत्रेषुजघन्यतोऽन्तर्मुहूर्त, तच्चपूर्वप्रकारेण भावनीयं,उत्कर्षतःसर्वत्रापि वनस्पतिकालः, द्वीन्द्रियादिभ्य उद्धृ त्यवनस्पतिषु यथोक्तप्रमाणमनन्तमपि कालमवस्थानात् । यथैवामूनिपञ्च सूत्राण्यन्तरविषयाण्यौधिकान्युक्तानि तथैव पर्याप्तविषयाण्यपर्याप्तविषयाण्यपि भणनीयानि, तानि चैवम्-‘एगिदियअपनत्तस्सणंभंते! अंतरंकालतो केवचिरंहोइ?, गोयमा जहन्नेणं अंतोमुत्तमुक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साईसंखेजवासमब्महियाई, बेइंदियअपजत्तस्स णं भंते ! अंतरं कालतो केवचिरं होइ?, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अनंत कालं वणस्सइकालो, एवं जाव पंचेंदियअपज्जत्तस्स ।' एवं पञ्च पर्याप्तसूत्राण्यपि वक्तव्यानि ।। साम्प्रतमल्पबहुत्वमाह मू. (३४५) एएसिणंभंते! एगिदि बेइं० तेइं० चउ० पंचिंदियाणं कयरेशहितो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा?, गोयमा! सव्वत्थोवा पंचेदिया चउरिदिया विसेसाहिया तेइंदिया विसेसाहिया बेइंदिया वसेसाहिया एगिदिया अनंतगुणा । एवं अपञ्जत्तगाणं सव्वत्थोवा पंदिया अपजत्तगा चउरिदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया तेइंदिया अपजत्तगा विसेसाहिया बेइंदिय अपञ्जत्तगा विसेसाहिया एगिदिया अपजत्तगा अनंतगुणा सइंदियाप०वि०। सव्वत्योवाचतुरिदियापजतगापंचेदिया पञ्जतगाविसेसाहिया वेदियपजत्तगा विसेसाहिया तेइंदियपजत्तगा विसेसाहिया एगिदियपजत्तगा अणंतगुणा, सइंदिया पञ्जत्तगा विसेसाहिया। एतेसिणंभंते! सइंदियाणं पजत्तगअपजत्तगाणंकयरे २?, गोयमा! सव्वत्थोवा सइंदिया अपजत्तगा सइंदिया पञ्जत्तगा संखेनगुणा । एवं एगिदियावि। एतेसिणंभंते ! बेइंदियामं पजत्तापजत्तगाणंअपापबहुं?, गोयमा! सब्वत्थोवा बेइंदिया पञ्जत्तगा अपजत्तगा असंखेनगुणा, एवं तेदियचउरिदियपं.दियावि। एएसिणं भंते ! एगिदियाणं बेइंदि-० तेइंदि० चउरिदि० पंचेंदियाण य पजत्तगाण य अपजत्तगाण यकयरे २?, गोयमा सव्वत्थोवा चउरिदिया पजतगा पंचेदियापजतगाविसेसाहिया बेइंदिया पजत्तगा विसेसाहिया तेइंदिया पजत्तगाविसेसाहिया पंचेदिया अपजत्तगा अंखेजगुणा चउरिदिया अपजत्ता विसेसाहिया तेइंदियअपज्जत्ता विसेसाहिया बेइंदिया अपजत्ता विसेसाहिया एगिदियअपञ्जत्ता अनंतगुणा सइंदिया अपजत्ता विसेसाहिया एगिदियपज्जत्ता संखेजगुणा सइंदियपजत्ताविसेसाहिया सइंदिया विसेसाहिया। सेत्तं पंचविधा संसारसमावण्णगा जीवा ।। वृ. “एएसि णमित्यादि प्रश्नसूत्रं सूगम, भगवानाह-गौतम ! सर्वस्तोकाः पञ्चेन्द्रियाः, सङ्खयेययोजनकोटीकोटीप्रमाणविष्कम्भसूचीप्रमितप्रतरासङ्घयेयभागवय॑सङ्खयेयश्रेणिगताकाशप्रदेशराशिप्राणत्वात्, तेभ्यश्चतुरिन्द्रिया विशेषाधिकाः, विष्कम्भसूच्यास्तेषांप्रभूतसङ्घयेययोजनकोटीकोटीप्रमाणत्वात्, तेभ्योऽपित्रीन्द्रिया विशेषाधिकास्तेषांविष्कम्भसूच्याः प्रभूततरसङ्घयेययोजनकोटीकोटीप्रमाणत्वात्, तेभ्योऽपि द्वीन्द्रि विशेषाधिकास्तेषां विष्कम्भसूच्याःप्रभूततमसङ्खयेय 9129] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003348
Book TitleAgam Sutra Satik 14 Jivajivabhigam UpangSutra 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages532
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 14, & agam_jivajivabhigam
File Size12 MB
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