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राजप्रश्नीयउपाङ्गसूत्रम्-३३ परिक्षेपप्रमाणं जबूद्वीपपरिक्षेपप्रमाणवत् क्षेत्रसमासटीकातः परिभावनीयम् ॥
मू. (३४) सेणंएगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वनसंडेण य सहतो समंता संपरिखित्ते, सा णं पउमवरवेइया अद्धजोयणं उद्धं उच्चत्तेणं पंचधनुसयाई विक्खंभेणं उवकारियलेणसमा परिक्खेवेणं।
तीसेणंपउमवरवेइयाएइमेयारूचे वन्नावासे पन्नत्ते, तंजहा वयरामया निम्मा रिट्ठामया पतिढाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पमया फलगा लोहियक्खमइओ सूईओ नानामणिमया कडेवरा नानामणिमयाकडेवरसंघाडगा नानामणिमयारूवा नानामणिमया रूवसंघाडगाअंकामया पक्खबाहाजोइरसामया वंसावंसकवेलुगा रइयामइओपट्टियाओजातरूवमई ओहाडणी वइरामया उवरिपुच्छणी सहरयणामई अच्छायणे।
साणं पउमवरवेइया एगमेगेमं हेमजालेणं गवक्खजालेणं खिंखिणीजालेणं घंटाजालेणं जुत्तामालेणंमणिजालणंकणगजालेणं रयणजालेणं पउमजालेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ता, तेणंदामा तवणिज्जलंबूसगा जाव चिट्ठति । तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थर देसे २ तहिं २ बहवे हयसंघाडाजाव उसभसंघाडासचरयणामया अच्छा जावपडिरूवा पासादीया ४ जाववीहीतो पंतीतो मिहुणाणि लयाओ।
से केणटेणं भंते ! एवं वुचति-पउमवरवेइया र?, गोयमा ! परमवरवेइया णं तत्थर देसे २ तहिं २ वेइयासु वेइयाबाहासु य वेइयफलतेसु य वइयपुडतरेसु य खभेसु खंभसीसेसु खंभपुटतरेसु सुयीसुसुयीमुखेसु सूइफलएसु सूईपुटंतरेसु पक्खेसु पक्खबाहासु पक्खपेरंतेसु पक्खपुडतरेसु बहुयाइं उप्पलाई पउमाई कुमुयाइं नलिनातिं सुभगाइं सोगंधिदायई पुंडरीयाई महापुंडरीयाणि सयवत्ताई सहस्सवत्ताई सब्बरयणामयाइं अच्छाई पडिरूवाइं महया वासिक्कयछत्तसमाणाइंपन्नत्ताइंसमणाउसो!, से एएणं अटेणंगोयमा! एवं वुच्चइ-पउमवरवेइया
पउमवरवेइया णं भंते ! किं सासया०?, गोयमा ! सिय सासया सिय असासया, से केणटेणं भंते! एवं वुचइ-सिय सासया सिय असासया?, गोयमा! दबट्ठयाए सासया वनपजवेहि गंधपजवेहिं रसपजवेहिं फासपञ्जवेहिं फासपजवेहिं असासया, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुचति-सिय सासया सिय असासया।
पउमवरवेइया णं भंते! कालओ केवचिरं होइ?, गोयमा! न कयाविनासि न कयावि नत्थि न कयाविन भविस्सइ, भुवंच हवइय भविस्सइय, धुवा निइया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया निचा पउमवरवेइया।
सेणं वणसंडे देसूणाईदो जोयणाइंचकवालविखंभेणं उवयारियालेणसमे परिक्खेवेणं, वनसंडवण्णतो भाणितव्वो जाव विहरति । तस्स णं उवयारियालेणस्स चउदिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पन्नत्ता वण्णओ, तोरणाझयआ छत्ताइच्छत्ता, तस्सणंउवयारियालयणस्स उवरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नते जाव मणीणं फासो।।
वृ.तच एकयापद्मवरवेदिकयाएकेन वनखण्डेनसर्वतः-सर्वासुदिक्षुसमन्ततः-सामस्त्येन सम्यग् परिक्षिप्तं ‘सा णं पडॅमवरवेइया' इत्यादि, सा पद्मवरवेदिका अंर्द्ध योजनमूर्ध्वमुच्चैस्त्वेन पञ्च धनुःशतानि विष्कम्भतः परिक्षेपेण 'उपकारिकालयनसमाना' उपकारिकालयन
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