SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२१ मूलं-५३ ‘पंचहिं अगारसएहिं' इत्यादिकं वाच्या मू. (५४)तएणं सावत्थीए नयरीए सिंघाडगतियचउक्कचच्चरचउमुहमहापहपहेसुमहया जनसद्देइ वा जनवूहेइ वा जनकलकलेइ वा जनबोलेइ वा जनउम्मीइ वा जनउक्कलियाइ वा जनसन्निवाएइ वा जाव परिसा पञ्जुवासइ।। तएणं तस्स सारहिस्सतं महाजनसदं च जनकलकलं च सुणेत्ता य पासेत्ता य इमेयासवे अज्झथिए जाव समुपज्जित्था, किण्णं अज्झ जाव सावत्थीए नयरीए इंदमहेइ वा खंदमहेइ वा रुद्दमहेइ वा मउंदमहेइ वा नागमहेइ वा भूयमहेइ वा जखमहेइ वा थूभमहेइ वा चेइयमहेइ वा रुक्खमहेइ वा गिरिमहेइ वा दरिमहेइ वा अगडमहेइ वा नईमहेइ वा सरमहेइ वा सागरमहेइ वा जंणं इमे बहवे उग्गा भोगा राइना इक्खागा खत्तिया नाया कोरव्वा जाव इन्भाइब्भपुत्ता ण्हाया कयबलिकम्मा जहोववाइए जाव अप्पेगतिया हयगया जाव अप्पेगतिया गयगया पायचारविहारेणं महयार वंदावंदएहिं निग्गच्छंति, एवं संपेहेइ २ कंचूइजपुरिसंसदावेइ सद्दावित्ता एवं वयासी किण्णं देवाणुप्पिया! अज सावत्थीए नगरीए इंदमहेइ वा जाव सागरमहेइ वा जेणं इमे बहवे उग्गा भोगा० निग्गच्छंति?, तए णं से कंचुईपुरिसे केसिस्स कुमारसमणस्स आगमणप्पिया! अज सावत्थीए नयरीएइंदमहेइ वा जाव सागरमहेइ वाजेणं इमे बहवेजाव विंदाविंदएहिं निग्गच्छंति, एवं खलु भो देवाणुप्पिया ! पासावचिजे केसीनामं कुमारसमणे जाइसम्पन्ने जाव दूइज्जमाणे इहमागए जाव विहरइ । तेण अज सावत्थीए नयरीएनयरीए बहवे उग्गा जावइन्भाइब्मपुत्ता अप्पेगतिया वंदणवत्तियाए जाव महया वंदावंदएहि निग्गच्छइ, तए णं से चित्ते सारही कंचुइपुरिसस्स अंतिए एयमटुं सोचा निसम्महतुट्टजावहियए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ सदाविताएवंवयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! चाउग्घंटे आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह जाव सच्छत्तं उवट्ठति। तए णं से चित्ते सारही हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते शुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवर परिहिते अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरेजेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइउवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहंदुरुहइ२त्ता सकोरिंटमल्लदामेणंछत्तेणंघरिजमाणेणं महया भडचडगरेण विंदपरिखित्ते सावत्थीनगरीए मझमझेणं निग्गच्छि २ ता -जेणेव कोट्टए चेइएजेणेव केसीकुमारसमणे तेणेव उवागच्छइ र त्ता केसिकुमारसमणस्स अदूरसामंते तुरए निगिण्हइ रहं ठवेइ य, ठवित्ता पचोरुहति र त्ता जेणेव केसीकुमारहसमणे तेणेव उवागच्छइ २ ता केसिकुमारसमणं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिण करेइ करित्ता वंदइ नमसइ २ ता नचासण्णे नातिदूरे सुस्सूसमामे नमसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विनएण पज्जुवासइ तए णं से केसीकुमारसमणे चित्तस्स सारहिस्स तीसे महतिमहालियाए महचपरिसाए चाउजामंधम्म परिकहेइ, तं० सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं सव्याओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं। तएणंसा महतिमहालया महच्चपरिसा केसिस्स कुमारसमणस अंतिए धम्मं सोचा निसम्म [821 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003347
Book TitleAgam Sutra Satik 13 Rajprashniya UpangSutra 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages184
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 13, & agam_rajprashniya
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy