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________________ १६८ औपपातिकउपाङ्गसूत्रम्-५० अंबडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसते आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, से कहमेयं भंते! एवं ?, गोयमा ! जण्णं से बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ-एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे जाव घरसए वसहि उवेइ, सच्चे णं एसमढे, अहंपिणं गोयमा! एवमाइक्खामिजाव एवं परवेमि-एवं खलु अम्मडे परिव्वायए जाव वसहिं उवेइ । सेकेणटेणं भंते! एवं वुच्चइ अम्मडे परिव्वायएजाव वसहिं उवेइ?, गोयमा!, अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स पगइभद्दयाएजाव विणीयाएछटुंछडेणं अनिक्खित्तेणंतवोकम्मेणं उद्धं बाहाओ पगिज्झियर सूराभिमुहस्स आतावणभूमीए आतावेमाणस्ससुभेणं परिणामेणंपसत्याहिं लेसाहि विसुज्झमाणीहिं अन्नया कयाइ तदावरणिजाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहावूहामग्गणगवेसणं करेमाणस्स वीरियलद्धीए वेउब्बियलद्धीए ओहिनाणलद्धी समुप्पन्ना। तए णं से अम्मडे परिव्वायए ताए वीरियलद्धीए वेउब्वियलद्धीए ओहिणाणलद्धीए समुप्पण्णाए जणविम्हावणहेउं कपिल्लपुरे घरसए जाव वसहिं उवेइ, से तेणढेणं गोयमा! एवं वुच्चई-अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए जाव वसहिं उवेइ। पहूणंभंते? अम्मडे परिवायए देवाणुप्पियाणंअंतिए मुंडे भवित्ताअगाराओअनगारियं पव्वइत्तए?, नो इणढे समठे, गोयमा! अम्मडे णं परिव्वायए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणंभावमाणे विहाइ। नवरंऊसियफलिहे अवंगुदुवारे चियत्तंतेउरघरदारपवेसीनवुच्चइ अम्मडस्सणं परिव्यायगस्स थूलए पाणाइवाए पञ्चक्खाए जावजीवाए जाव परिग्गहे नवरं सव्वे मेहुणे पञ्चक्खाए जावजीवाए, अम्मडस्स णं नो कप्पइ अक्खसोतप्पमाणमेत्तंपि जलं सयराहं उत्तरित्तए नन्नत्य अद्धाणगमणेणं, अम्मडस्सणंनोकप्पइ सगडंएवं चेव भाणियव्बंजाव नन्नथएगाए गंगामट्टियाए अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स नो कप्पइ आहाकम्मिए वा उद्देसिए वा मीसजाए इ वा अज्झोअरए इ वा पूइकम्मे इ वा कीयगडे इ वा पामिच्चे इ वा अनिसिढे इ वा अभिहडे इ वा ठइत्तए वा रइत्तए वा कंतारभत्ते इ वा दुभिक्खभत्ते इ वा पाहुणगभत्ते इ वा गिलाणभत्ते इ वा वदलियाभत्तेइ वा भोत्तए वा पाइत्तएवा, अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स नो कप्पइ मूलभोयणे वा जाव बीयभोयणे वा भोत्तए वा पाइत्तए वा, अम्मडस्स णं परिव्बायगस्स चउविहे अनत्थदंडे पञ्चक्खाए जावजीवाए, तंजहा-- ___अवज्झाणायरिए पमायायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे, अम्मडस्स कप्पइ मागहए अद्धाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए सेऽविय वहमाणए नो चेवणं अवहमाणए जाव सेऽविय पूए नोचेवणं अपरिपूए सेऽविय सावजेत्तिकाऊंनो चेव णं अणबजे सेऽविय जीवा इतिकट्ठनोचेव णं अजीवा सेऽविय दिन्ने नो चेवणं अदिन्ने सेऽविय दंतहत्थपायचरुचमसपक्खालणठ्याए पिबित्तए वाणो चेवणं सिणाइत्तए, अम्मडस्स कप्पइ मागहए य आढए जलस्स पडिग्गाहित्तए, सेऽविय वहमाणे जाव दिन्ने नो चेव णं अदिण्णे सेऽविय सिणाइत्तए नो चेव णं हत्थपायचरुचमसपक्खालणट्टयाए पिबित्तए वा। अम्मडस्सनो कप्पइ अनउत्थिया वाअन्नउत्थियदेवयाणि वाअन्नउत्थियपरिग्गहियाणि वा चेइयाइं वंदित्तए वा नमंसित्तए वाजाव पञ्जुवासित्तए वा नन्नत्थ अरिहंते वा अरिहंतचेइयाई वा । अम्मडे णं भंते ! परिव्वायए कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति ? कहिंउववजि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003346
Book TitleAgam Sutra Satik 12 Auppatik UpangSutra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages150
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 12, & agam_aupapatik
File Size4 MB
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