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________________ ४७४ भगवतीअङ्गसूत्रं ९/-1३२/४५२ शर्कराप्रभावालुकाप्रभाभ्यां द्वादश १२, शर्कराप्रभापङ्कप्रमाभ्यां नव, शर्कराप्रभाधूमप्रभाभ्यां षट्, शर्कराप्रभातमःप्रभाभ्यां त्रयः, वालुकाप्रभापङ्कप्रभाभ्यां नव, वालुकाप्रभाघूमप्रभाभ्यां षट्, वालुकाप्रभातमःप्रभाभ्यां त्रयः, पङ्कप्रभाघूमप्रभाभ्यां षट्, पङ्कप्रभातमःप्रभाभ्यां त्रयः, घूमप्रभदिभिस्तु त्रय इति। तदेवं त्रिकयोगे पञ्चोत्तरं शतं चतुष्कसंयोगे तु पञ्चत्रिंशदिति, एवं सप्तानां त्रिषष्टेः पञ्चोत्तरशतस्य पञ्चत्रिंशतश्च मीलने द्वे शते दशोत्तरे भवत इति ।। मू. (४५३ वर्तते) पंच भंते ! नेरइया नेरइयप्पवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होजा? पुच्छा, गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा व अहेसत्तभाए वा होजा अहवा एगे रयण चत्तारि सक्करप्पभाए होजा जाव अहवाएगे रयण चत्तारिअहेसत्तमाए होजा अहवादो रयण तिनि सकरप्पभाए होजा एवंजाव अहवा दोरयणप्पभाए तिनि अहेसत्तमाए होजा अहवा तिन्नि रयण० दोसक्करप्पभाए होजा एवंजाव अहेसत्तमाए होजाअहवा चत्तारि रयण० एगे सक्करप्पभाए होजा एवं जाव अहसा चत्तारि रयण० एगे अहेसत्तमाए होजा अहवा एगे सक्कर० चत्तारि वालुयप्पभाए होजा एवंजहारयणप्पभाए समंउवरिमपुढवीओ चारियाओतहासकरप्पभाएवि समं चारेयव्वाओ जाव अहवा चत्तारि सक्करप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा । एवं एकेक्काए समंचारेयव्वाओजावअहवा चत्तारितमाएएगेअहेसत्तमाए होजा अहवा एगे रयण० एगे सक्कर० तिनि वालुयप्पभाए होजा एवं जाव अहवा एगे रयण० एगे सक्कर० तन्नि अहेसत्तमाए होञ्जा एहवा एगे रयण० दो सकर० दो वालुयप्पभाए होजा एवं जाव अहवा एगे रयण० एगे सक्कर तिनि अहेसत्तमाए होज्जा अहवा एगे रयण० दो सक्कर तिन्नि वालुयप्पभाए होजा एवंजाव अहवा एवं जाव अहवा एगे रयण दो सक्कर० दो अहेसत्तमाए होजा अहवा दो रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए दो वालुयप्पभाए होज्जा एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए दो अहेसत्तमाए होज्जा अहवा एगे रयण० तिन्नि सक्कर० एगे वालुयप्पभाए होजा एवंजाव अहवा एगे रयण तिनि सकर० एगे अहेसत्तमाए होजाअहवा दो रयण० दो सक्कर० एगे वालुयप्पभाए होना। एवं जाव अहेसत्तमाए अहवा तिन्नि रयण० एगे सक्कर० एगे वालुयप्पभाए होजा एवं जाव अहवा तिन्निरयण० एगे सक्कर० एगे अहेसत्तमाए होजा अहवा एगे रयण० एगे वालुय० तिनि पंकप्पभाए होज्जा, एवं एएणं कमेणं जहा चउम्हं तियासंजोगो भणितो तहा पंचण्हवि तियासंजोगो भाणियव्यो नवरं तत्थ एगो संचारिजइ इह दोनि सेसं तं चैव जाव अहवा तिनि घूमप्पभाए एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होजा अहवा एगे रयण० एगे सक्कर एगे वालुय० दो पंकप्पभाए होला। ___ एवं जाव अहवा एगे रयण० एगे सक्न० एगे वालुय दो अहेसत्तमाए होज्जा ४, अहवा एगे रयण०एगे सक्छ० दो वालुय० एगे पंकप्पमाए होज्जा एवंजाव अहेसत्तमाए ८, अहवा एगे रयण० एगे सक्काप्पमाए एगे वालुय० एगे पंकप्पमाए होज्जा! एवं जाव अहवा एगे रयण० दो सक्कर० एगे वालुय एगे अहेसत्तमाए होज्जा १२ अहवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003339
Book TitleAgam Sutra Satik 05 Bhagavati AngSutra 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages1096
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size23 MB
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