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मूलं-१
नमो नमो निम्मल सणस्स पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामिने नमः
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३८ जीतकल्प-छेदसूत्रं
(सटीक)
[पश्छेद सूत्रं (जिनभद्रक्षमाश्रमण विरचितं-मूलम् + श्री सिद्धसेनगणि विरचिता - चूर्णिः)
सिद्धत्थ-सिद्ध-सासन सिद्धत्थ-सुयं सुयं च सिद्धत्थस्स।
वीर-वरं वर-वरयं वर-वरएहि महियं नमह जीव-हियं॥ एक्कारस वि गणहरे दुद्धर-गुण-धारए धराहिव-सारे।
जंबु-प्पभवाईंए पणमह सिरसा समत्त-सुत्तत्थ-धरे ॥ दस-नव-पुव्वी अइसेसिणो य अवसेस-नाणिणो य जत्तेणं२।
सव्वे वि सव्व-कालं तिगरण-सुद्धेण नमह जइ-गुण-प्पवरे३॥ एत्तो नेव्वाणगं४ नेव्वाणं गमयतीति निव्वाणंगं।
पगयं पसत्थ-वयणं पहाण-वयणंच पवयणं नमह सया५॥ नमह य अनुओग-धरं जुग-प्पहाणं पहाण नाणीण मयं६ ।
सव्व-सइ-सत्थ-कुसलं दंसन-नाणोवओग-मग्गम्मि ठियं ॥ जस्स मुह-निज्झरामय-मय-वस-गंधाहिवासिया इव भमरा ।
नाण-मयरंद-तिसिया रत्ति७ दिया य मुनिवरा सेवंति सया ।। स-समय-पर-समयागम-लिवि-गणिय-च्छंद-सद्द-निम्माओ।
दससु वि दिसासु जस्स य अनु ओ गो८ भमइ अनुवमो जस-पडहो । नाणाणं नाणीण य हेऊण९ य पमाण-गणहराण य पुच्छा।
अविसेसओ विसेसा विसेसियाऽऽव स्स य म्मि अनुवम-मइणा ॥ जेन य छेय सुय त्था आवत्ती-दान-विरयणा जत्तेणं।
पुरिस-विसेसेणं१० फुडा निज्जूढा जीयदान कप्पम्मिविही॥ पर-समयागम-निउणं सुसमिय-सु-समण-समाहि-मग्गेण गयं।
जिनभद्दखमासमणं खमासमणाणं११ निहाणमिव एकं ॥ तं नमिउं मय-महणं मानरिहं लोभ-वज्जियं जिय-रोसं ।
तेन१२ य जीय-विरइय-गाहाणं विवरणं भणिहामि जहत्थं ।। चू. को वि सीसो विनीओ आवस्सय-दसकालिय-उद्धारज्झयणा-ऽऽयार-निसीह-सूयगडदसाकप्प-ववहार-माइयं अंग-पविटु बाहिरं च सुत्तओ अत्थओ य अहिजिऊण गुरुमुवगम्म
तनार
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