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अध्ययन:६, उद्देशक:
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अन्नओ नत्थिनीसारंमंदरीिवरि संठिया ॥ मू. (१०५६) आसनं मंदिरं अन्नं लंधित्ता गंतमिच्छुगा।
मनसाभिनंदेवजा ताव पञलिया दुवे॥ मू. (१०५७) नियम-भंगं तय सुहुमंतीए तत्थ न निंदियं ।
तंनियम-भंग-दोसेणं डझेत्ता पढमियं गया ।। मू. (१०५८) ___ एवं नाउं सुहुमं पि नियममा विराहिह।
जे छिज्जा अक्खयं सोक्खं अनंतंच अनोवमं॥ मू. (१०५९) तव-संजमे वएसुंच नियमो दंड-नायगो।
तमेव खंडेमाणस्स न वए नोव संजमे। मू. (१०६०) आजम्मेणं तुजंपावंबंधेज्जा मच्छबंधगो।
वय-भंग-काउमाणस्स तं चेवट्ठगुणं मुणे॥ मू. (१०६१) सय-सहस्स-स-लद्धीए जोवसामित्तुं निक्खमे ।
वयं नियममखंडेंतो जंसोतं पुन्नमज्जिने ।। मू. (१०६२) पवित्ता य निवित्ता य गारत्थी संजमे तवे ।
जमनुट्ठिया तयं लाभंजाव दिक्खा न गिव्हिया ॥ मू. (१०६३) साहु-साहुणी-वग्गेणं विन्नायव्वमिह गोयमा ।
जेसिं मोत्तूण ऊसासं नीसासं नानुजाणियं ।। मू. (१०६४) तमवि जयणाए अनुन्नायं विजयणाए न सव्वहा।
अजयणाए ऊससंतस्स कओधम्मो कओ तवो। मू. (१०६५) भयवं जावइयं दिटुंतावइयं कहणपालिया।
जे भवे अवीय-परमत्थे किच्चाकिच्चमयाणगे। मू. (१०६६) एगंतेन हियं वयणं गोयमा दिस्संती केवली।
नो बलमोडीए कारेंति हत्ये धेतूण जंतुणो॥ मू. (१०६७) तित्थयर-भासिए वयणे जे तह त्ति अनुपालिया।
सिंदा देव-गणा तस्स पाए पणमंति हरिसिया।। मू. (१०६८) जे अविइय परमत्थे किचाकिच्चमजाणगे।
अंधो अंधी एतेसिं समंजल-थलं गड्ड-टिक्कुरं ॥ मू. (१०६९) गीयत्थे य विहारोबीओ गीयत्-मीसओ।
समनुन्नाओ सुसाहूणं नस्थि तइयं वियप्पणं॥ मू. (१०७०) गीयत्थे जे सुसंविग्गे अनालसी दढव्वएए।
अखलिय-चारिते सययं राग-दोस-विवज्जिए॥ मू. (१०७१) निविय अट्ठमय-हाणे समिय-कसाए जिइंदिए।
विहरेज्जा तेसिं सद्धि तुते छउमत्ये वि केवली ॥ मू. (१०७२) सुहुमस्स पुढवि-जीवस्स जत्थेगस्स किलामणा।
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