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महानिशीथ-छेदसूत्रम् -६/-/१०३७
वावइज्जा उदो तिन्नि सेसाइंपरियावई॥ मू. (१०३८) पायच्छित्तस्स ठाणाई संखाइयाइंगोयमा।
अनालोयंतो हु एकं पिससल्लमरणं मरे॥ मू. (१०३९) सयसहस्स नारीणं पोट्ट फालेत निर्गितइ।
सत्तट्ठमासिए गब्मे चडफडते निगितइ॥ मू. (१०४०) जंतस्स जेत्तियं पावं तेत्तियं तं नवं गुणं।
एक्कसित्थी पसंगेणं साहू बंधिज मेहुणा ।। मू. (१०४१) साहुणीए सहस्सगुणं मेहुणेक्कसि सेविए।
कोडिगुणं तु बिइजेणं तइए बोही पनस्सई॥ मू. (१०४२) एयं नाऊण जो साहू इत्थियं रामेहिई।
बोहिलामा परिब्मट्ठो कहं वरा सोहिइ॥ मू. (१०४३)
अबोहिलाभियं कम्मं संजओ अह संजई।
मेहुणे सेविए आऊ-तेउक्काए पबंधई ॥ मू. (१०४४) जम्हा तीसु वि एएसु अवरज्झंतोहुगोयमा ।
उम्मग्गमेव वद्धारे मग्गं निट्ठवइ सव्वहा॥ मू. (१०४५) ते सरीरंसहत्येणं छिंदिऊणं तिलं तिलं। मू. (१०४६) अग्गिए जइ वि होमंति तो विसुद्धी न दीसइ ।। मू. (१०४७) तारिसो वि निवित्तिसो परदारस्स जई करे।
सावग-धम्मच पालेइगइ पावेइ मज्झिमं॥ मू. (१०४८) भयवं सदार-संतोसे जइ भवे मज्झिमंगई।
ता सरीरे वि होमंतो कीस सुद्धिं न पावई॥ मू. (१०४९) सदारं परदारंवा इत्थी पुरीसो व्व गोयमा।
रमंतो बंधए पावं नोणंभवइ अबंधगो॥ मू. (१०५०) सावग-धम्मंजहुत्तं जो पाले पर-दारंचए।
जावजीवं तिविहेणं तमनुभावेन सा गई। मू. (१०५१) नवरं नियम-विहूणस्स परदार-गमनस्स उ ।
अनियत्तस्स भवे बंधं निवत्तिए महाफलं॥ मू. (१०५२) सुथेवाणं पि निवित्तिजो मनसा वि य विराहए।
सो मओ दोग्गइंगच्छे मेघमाला जहजिया। मू. (१०५३)
__ मेघमालजियं नाहं जाणिमो भुवन-बंधवा।
मनसावि अनुनिवित्तिजा खंडियं दोग्गइंगया॥ मू. (१०५४) वासुपुज्जस्स तित्थम्मि भोला कालगच्छवी।
अन्नओ नत्थि नीसारं मंदिरोवरि संठिया॥ मू. (१०५५) सा नियममागास-पक्खंदा काउंभिक्खाए निग्गया।
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