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निशीथ-छेदसूत्रम् -२-११/७४६ [भा.३९५९] नवंगसोत्तपडिवोहयाए, अट्ठारसविरतिसेसकुसलाए।
वावत्तरीकलापंडियाए चोसट्ठिमहिलागुणेहिं च ।। [भा.३९६०] सोआती नव सोत्ता, अट्ठारसे होतिं देसभासाओ।
इगतीस रइविसेसा, कोसल्लं एक्कवीसतिहा॥ [भा.३९६१] चउकण्णम्मि रहस्से, रातेणं रायदिन्नपसराते।
तिमिगरेहिं व उदहीण खोभितो जा मणो मुणिणो॥ [भा.३९६२] जाहे पराइया सा, न समत्था सीलखंडणं काउं।
नेऊण सेलसिहरं, तो से सिलं मुंचते उवरिं॥ [भा.३९६३] एगंतनिज्जरा से, दुविधा आराहणा धुवा तस्स।
अंतकिरियं व साधू, करेज देवोववायं वा ॥ [भा.३९६४] मुनिसुव्वयंतवासी, खंदगदाहे य कुंभकारकडे।
देवी पुरंदरजसा, दंडति पालक्कमरुते य॥ [भा.३९६५] पंचसया जातेणं, रुद्रुण पुरोहितेण मिलियाति ।
रागद्दोसतुलग्गं, समकरणं चिंतियं तेहिं ।। [भा.३९६६] जंतेण कतेण व सत्थेण व सावतेहि विविधेहि ।
देहे विद्धंसेते, न य ते ठाणाहि उचलंति॥ [भा.३९६७] पडिनीयता य केई, अगिंग सो सव्वतो पदेज्जाहिं।
पादोवगमनसंतो जइ चाणक्कस्स व करीसे ॥ [भा.३९६८] पडिनीयया य केई, वम्मंसे खेलतेहि विनिहित्ता।
महु-घय-मक्खियेहं, पिपीलियाणं तु देजाहि॥ [भा.३९६९] अह सो विवायपुतो, वोसट्ट निसिट्ठ चत्तदेहाउं ।
सोणियगंधेहि पिपीलिया चालंकिओ धीरो ।। भा.३९७०] जह सो कालासगवेसिउ विमोग्गल्लसेलसिहरम्मि।
खतितो विउविऊणं, देवेण सियालरूवेणं॥ [भा.३९७१] जह सो वंसिपदेसे, वोसिह निसिह चत्तदेहो उ ।
वंसीपातेहिं विनिग्गतेहिं आगासमुक्खित्तो॥ [भा.३९७२] जहऽवंतीसुकुमालो, वोसट्ट निसट्ट चत्तदेहो उ।
धीरो सपेल्लियाए, सिवाते खतिओति रत्तेणं॥ [भा.३९७३] जह ते गोट्टट्ठाणे, वोसट्ट निसिट्ठ चत्तदेहागा।
उदगेण वुज्झमाणा, वियरम्मि उ संकमे लग्गा । [भा.३९७४] बावीसमानुपुट्विं, तिरिक्खमणुया व भेसणया (ते)।
विसयाणुकम्मरक्खा, न करेज्ज देवा व मणुया वा ।। [भा.३९७४] जह सा बत्तीसघडा, वोसट्ठनिसट्ठचत्तदेहागा।
धीरा गतेण उदीविते णदिगलम्मि उ ललिया।
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