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________________ ३०४ - - निशीथ-छेदसूत्रम् -२-११/७४६ [भा.३९५९] नवंगसोत्तपडिवोहयाए, अट्ठारसविरतिसेसकुसलाए। वावत्तरीकलापंडियाए चोसट्ठिमहिलागुणेहिं च ।। [भा.३९६०] सोआती नव सोत्ता, अट्ठारसे होतिं देसभासाओ। इगतीस रइविसेसा, कोसल्लं एक्कवीसतिहा॥ [भा.३९६१] चउकण्णम्मि रहस्से, रातेणं रायदिन्नपसराते। तिमिगरेहिं व उदहीण खोभितो जा मणो मुणिणो॥ [भा.३९६२] जाहे पराइया सा, न समत्था सीलखंडणं काउं। नेऊण सेलसिहरं, तो से सिलं मुंचते उवरिं॥ [भा.३९६३] एगंतनिज्जरा से, दुविधा आराहणा धुवा तस्स। अंतकिरियं व साधू, करेज देवोववायं वा ॥ [भा.३९६४] मुनिसुव्वयंतवासी, खंदगदाहे य कुंभकारकडे। देवी पुरंदरजसा, दंडति पालक्कमरुते य॥ [भा.३९६५] पंचसया जातेणं, रुद्रुण पुरोहितेण मिलियाति । रागद्दोसतुलग्गं, समकरणं चिंतियं तेहिं ।। [भा.३९६६] जंतेण कतेण व सत्थेण व सावतेहि विविधेहि । देहे विद्धंसेते, न य ते ठाणाहि उचलंति॥ [भा.३९६७] पडिनीयता य केई, अगिंग सो सव्वतो पदेज्जाहिं। पादोवगमनसंतो जइ चाणक्कस्स व करीसे ॥ [भा.३९६८] पडिनीयया य केई, वम्मंसे खेलतेहि विनिहित्ता। महु-घय-मक्खियेहं, पिपीलियाणं तु देजाहि॥ [भा.३९६९] अह सो विवायपुतो, वोसट्ट निसिट्ठ चत्तदेहाउं । सोणियगंधेहि पिपीलिया चालंकिओ धीरो ।। भा.३९७०] जह सो कालासगवेसिउ विमोग्गल्लसेलसिहरम्मि। खतितो विउविऊणं, देवेण सियालरूवेणं॥ [भा.३९७१] जह सो वंसिपदेसे, वोसिह निसिह चत्तदेहो उ । वंसीपातेहिं विनिग्गतेहिं आगासमुक्खित्तो॥ [भा.३९७२] जहऽवंतीसुकुमालो, वोसट्ट निसट्ट चत्तदेहो उ। धीरो सपेल्लियाए, सिवाते खतिओति रत्तेणं॥ [भा.३९७३] जह ते गोट्टट्ठाणे, वोसट्ट निसिट्ठ चत्तदेहागा। उदगेण वुज्झमाणा, वियरम्मि उ संकमे लग्गा । [भा.३९७४] बावीसमानुपुट्विं, तिरिक्खमणुया व भेसणया (ते)। विसयाणुकम्मरक्खा, न करेज्ज देवा व मणुया वा ।। [भा.३९७४] जह सा बत्तीसघडा, वोसट्ठनिसट्ठचत्तदेहागा। धीरा गतेण उदीविते णदिगलम्मि उ ललिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003320
Book TitleAgam Suttani Satikam Part 16 Nishitha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages412
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nishith
File Size20 MB
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