________________
४६२
निशीथ-छेदसूत्रम् -१-६/४४० मू. (४४०)जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो पालुकिमियं वा कुञ्ििकमियं वा अंगुलीए निवेसिय निवेसिय नीहरइ, नीहरेंतं वा सातिञ्जति ॥
मू. (४४१) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो दीहाओ नहसीहाओ कप्पेज वा संठवेज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिजति ।।
मू. (४४२) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो दीहाइं जंघ-रोमाइंकप्पेज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिजति ॥
मू. (४४३) जेभिक्खूमाउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो वत्थि-रोमाइंकप्पेज वा संठवेज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिजति ॥ ___ मू. (४४४)जे भिक्खूमाउग्गामस्स मेहुणवडियाएअप्पणो चक्खु-रोमाइंकप्पेज वा संठवेज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिजति ॥
मू. (४४५) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो कक्ख-रोमाइं कप्पेज वा संठवेज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिजति ॥
मू. (४४६) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो मंसु-रोमाइंकप्पेज वा संठवेज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिज्जति॥
मू. (४४७) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियए अप्पणो दंते आघंसेज वा पघंसेज वा आघंसंतं वा पघंसंतं वा सातिजति ॥
मू. (४४८) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो दंते उच्छोलेज वा पधोएज्ज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिजति ॥ ___ मू. (४४९) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो दंते फूमेज्ज वा रएज वा, फूमतं वा रएतं वा सातिज्जति॥
मू. (४५०) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो उढे आमज्जेज वा पमजेज वा, आमजंतं वा पमजंतं वा सातिजति ॥
मू. (४५१) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो उढे संबाहेज वा पलिमद्देज वा, संबाहेंतं वा पलिमद्दतं वा सातिजति ।।
मू. (४५२) जे भिक्खूमाउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो उठे तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा नवनीएण वा मक्खेज वा भिलिंगेज वा मक्खेंतं वा मिलिंगेतं वा सातिजति ॥
मू. (४५३) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो उढे लोद्धेण वा कक्केण वा उल्लोल्लेज वा उव्वट्टेज वा, उल्लोलेंतं वा उवटेंतं वा सातिजति ॥
मू. (४५४) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो उट्टे सीओदग-वियडेण वा उसिणोदग-वियडेण वा उच्चोलेज वा पधोएज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिजति ॥
मू. (४५५) जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो उढे फूमेज वा रएज वा, फुमेंतं वा रएंतं वा सातिज्जति॥
मू. (४५६) जेभिक्खूमाउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो दीहाइंउत्तरोट्ठाइंअच्छिपत्ताई कप्पेज वा संठवेज्ज वा, कप्तं वा संठवेंतं वा सातिजति ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org