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________________ २४५ पदं-१०, उद्देशकः-, द्वारं छप्पएसिएणंभंते ! पुच्छा, गोयमा! छप्पएसिएणंखंधेसियचरमे १ नो अचरमे २ सिय अवत्तव्वए ३ नो चरमाइं४ नो अचरमाइं५ नो अवत्तव्वयाइं ६ सिय चरमे य अचरमे य७सिय चरमेय अचरमाइंच ८ सिय चरमाइंच अचरमे य९सियचरमाइंच अचरमाइंच १० सिय चरमे यअवत्तव्वए अ११ सिय चरमे यअवत्तव्वयाइंच १२ सिय चरमाइंच अवत्तव्बए अ१३ सिय चरमाइंच अवत्तव्वयाइंच १४ नो अचरमे य अवत्तव्वए य १५ नो अचरमे य अवत्तव्वयाइंच १६ नो अचरमाइं च अवत्तव्वए य १७ नो अचरमाइं च अवत्तव्वयाइं च १८ सिय चरमे य अचरमे य अवत्तव्वए य १९ नो चरमे य अचरमे य अवत्तव्बयाइंच २० नो चरमे य अचरमाइं च अवत्तव्वए य २१ नो चरमे य अचरमाइं च अवत्तव्वयाइं च २२ सिय चरमाइंच अचरमे य अवत्तव्वए य २३ सिय चरमाइंच अचरमेय अवत्तव्वयाइंच २४ सिय चरमाइंच अचरमाइंच अवत्तव्वए य २५ सिय चरमाइंच अचरमाइंच अवत्तव्वायाइंच २६। सत्तपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा, गोयमा ! सत्तपएसिए णं खंधे सिय चरिमे १ नो अचरिमे २ सिय अवत्तव्वए ३ नो चरिमाइं४ नो अचरिमाइं ५ नो अवत्तव्वयाइं ६ सिय चरमेय अचरमे य ७ सिय चरमे य अचरमाइं च ८ सिय चरमाइं च अचरमे य ९ सिय चरमाइं च अचरमाइं च १० सिय चरमे य अवत्तव्बए य ११ सिय चरमे य अवत्तव्वयाइं च १२ सिय चरमाइंच अवत्तव्वए य १३ सिय चरमाइंच अवत्तव्बयाइंच १४ नो अचरमे य अवत्तव्वए य १५ नो अचरमे य अवत्तब्वयाइं च १६ नो अचरमाइंच अवत्तव्वए य १७ नो अचरमाइंच अवत्तव्वयाइंच १८ सियचरमेय अचरमेय अवत्तव्वएय १९ सिय चरमेयअचरमेय अवत्तव्वयाई च २०सिय चरमे य अचरिमाइंच अवत्तव्वए अ२१ नो चरिमेय अचरिमाइंच अवत्तव्वयाइंच २२ सिय चरमाइंच अचरमेय अवत्तव्वए य २३ सिय चरमाइंच अचरमे य अवत्तव्वयाइं २४ सिय चरमाइंच अचरमाइंच अवत्तव्वए य २५ सिय चरमाइंच अचरमाइं च अवत्त २६। अट्ठपएसिएणं भंते! खंधे पुच्छा, गोयमा! अट्ठपएसिएखंधे सिय चरमे १ नो अचरमे २ सिय अवत्तव्वए ३ नो चरमाइं ४ नो अचरमाइं ५ नो अवत्तव्वयाइं ६ सिय चरिमेय अचरिमे य ७सिय चरिमे यअचरिमाइंच ८सिय चरिमाइंच अचरिमेय ९ सिय चरमाइंच अचरमाइंच १० सिय चरमे य अवत्तव्वए य ११ सिय चरम य अवत्तव्वयाइंच १२ सिय चरिमाइंच अवत्तव्वए य १३ सिय चरिमाइंच अवतव्वयाइं च १४ नो अचरिमे य अवत्तव्वए य १५ नो अचरिमे य अवत्तव्वयाइंच १६ नो अचरिमाइंच अवत्तव्वए य १७ नो अचरिमाइंच अवत्तव्वयाइंच १८ सिय चरिमे य अचरिमेय अवत्तव्वए य १९ सिय चरिमे य अचरिमेय अवत्तव्वयाइंच २०सिय चरिमेय अचरिमाइंच अवत्तव्वए अ२१ सिय चरिमेय अचरिमाइंचअवत्तव्वयाइं च २२ सिय चरिमाइंच अचरिमे य अवत्तव्वए अ२३ सियचरिमाइंच अचरिमे यअवत्तव्वयाइंच २४ सिय चरिमाइंच अचरिमाइंच अवत्तव्वए य २५ सिय चरिमाइंच अचरिमाइंच अवत्तव्वयाइंच २६ संखेज्जपेएसिए असंखेजपएसिए अनंतपएसिए खंधे०, जहेव अट्ठपएसिए तहेव पत्तेयं भाणियव्वं । वृ. 'दुपएसिएणंभंते!' इत्यादि प्रश्नसूत्रप्राग्वत्, निर्वचनमाह-'सियचरमे नो अचरमे सिय अवत्तव्वए' इत्यादि, द्विप्रदेशिकःस्कन्धः स्यात्-कदाचित् चरमः, कथमिति चेत्, उच्यते, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003314
Book TitleAgam Suttani Satikam Part 10 Pragnapana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages324
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size19 MB
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