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क्रम
|१.
४८३
२. |
वर्तमानणे ४५मागमभ6५०५ भाष्यं भाष्य श्लोकप्रमाण क्रम| भाष्य
गाथाप्रमाण निशीषभाष्य | ७५००
आवश्यकभाष्य * बृहत्कल्पभाष्य | ७६०० । ७. | ओघनियुक्तिभाष्य * ३२२ व्यवहारभाष्य ६४०० | ८. पिण्डनियुक्तिभाष्य * पञ्चकल्पभाष्य | ३१८५ । ९. दशवैकालिकभाष्य * जीतकल्पभाष्य | ३१२५ १०. | उत्तराध्ययनभाष्य (?)
३
४६
६३
नोध:(१) निशीष , बृहत्कल्प भने व्यवहारभाष्य न त सङ्घदासगणि डोपार्नु ४९॥य छे.
समा. संपानमा निशीष भाष्य तेनी चूर्णि साथे भने बृहत्कल्प तथा व्यवहार
भाष्य तेनी-तेनी वृत्ति साथे समाविष्ट थयुं छे. (२) पञ्चकल्पभाष्य सभा२५ आगमसुत्ताणि भाग-३८ मां शीत युं. (3) आवश्यकभाष्य भ. या प्रमा॥ ४८3 दज्यु भा १८३ ॥५मूळभाष्य ३५ छ
અને ૩૦૦ ગાથા અન્ય એક માર્ગની છે. જેનો સમાવેશ થાવશ્યક સૂત્ર-સદ્ધ માં यो छे. [.3 विशेषावश्यक भाष्य भूम४ प्रसिध्ध यु छ ५ . समय आवश्यकसूत्र- 6५२नु भाष्य नथी भने अध्ययनो अनुसार नी मलमल वृत्ति म पे विव२. तो आवश्यक भने जीतकल्प मे बने 6५२ भणे छे. हेनो
અત્રે ઉલ્લેખ અમે કરેલ નથી.] (४) ओघनियुक्ति, पिण्डनियुक्ति , दशवैकालिकभाष्य नो समावेश तेन तेनी वृत्ति भ.
थयो ४ छ. ५९ नो त विशेनो. अभीने मणेर नथी. [ओघनियुक्ति
(७५२ 3000 RD प्रभारी भाष्यनो ५५ोवा मजेता छ.] (५) उत्तराध्ययनभाष्यनी ॥था नियुक्तिमा मानी गयानुं समायछे (?) () मारीते अंग - उपांग - प्रकीर्णक - चूलिका मे ३५ आगम सूत्रो 6५२नो 5
માણનો ઉલ્લેખ અમારી જાણમાં આવેલ નથી. કોઈક સ્થાને સાક્ષી પાઠ-આદિ
५३५ भाष्यगाथा सेवामणे छे. (७) भाष्यकर्ता तरी मुण्य नाम सङ्घदासगणि सेवा भणेल छे. तेम४ जिनभद्रगणि
क्षमाश्रमण भने सिद्धसेन गणि नो ५९6८५ भणे छे. 32cis भाष्यन sal અજ્ઞાત જ છે.
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