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________________ ३७८ स्तुति तरंगिण तुद्द सरणागयवच्छलद्द उप्पज्जइ वरनाण, अभिनंदन अभिनंदयर तुह निम्मल सुविधाणं ||४|| वेण ॥५॥ कणयसुंदर कणयसुंदर रयणसिंहगड, नंदणवणसहिर तरुमेरुसिहर जिणभवणि मंडिअ, सुरअसुर चारणमुणिह सिद्ध जक्ख संघट्ट संविअ, तिहिं अभिसित्तउ देव तुं अति असिअमत्तिभरण, सुविधाणुं तुह सुमइजिण जयजयकार सरयसंभव सरयसंभव पउमदलनयण, वरपउमविहसिअवयण पउमगन्मसमवन्नसामिअ, पउमप्पह वर चरण पउमनिलय पउमासगठिअ, पउमपह अपवग्गपह सासय सुद्दसंपत्त, सुविधाणं तुह भवभसणिभविअहं करई परत ||६|| देवविअलिअ देवविअलिअ रयणपव्भार, तारायण -अच्छसिअस सिहरेण गयणयल चत्तउ, निन्नासिअतिमिरमर पृव्वदिसिहं करसितु पत्तउ, चउबिह - संघ - प्रसन्न -मण तुद्द भुवणंगणि पह जिण सुपास सुविधाण तुह वंदण भत्ति करेइ ||७|| केवि किंनर केवि किंनर केवि वरविण - आसासय-महुर-सरि केवि ताल-वर - गाई, वरननच्चई अवर अवर वंस सुइ सुहय वाई, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003304
Book TitleStuti Tarangini Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarsuri
PublisherLabdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan
Publication Year
Total Pages446
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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