________________
K
स सव्वापवनाण
अन्नाणनासं,
दिसउ आगमो अस निब्बाणवासं ||३॥
अहिठायगा सिद्धचकस्स जख्खा, तहा जक्विणी संघरक्खा सुदक्खा | पसीअंतु मे सव्वद्दा सावद्दाणा, चक्केसरीओ विमलाभिहाणा
स्तुति तरंगिणी
Jain Education International
Beds
(e)
सयल - सुक्खाण लक्खाण वक्खाणयं, बहुय भवपाव - संतावविनिवारणं ।
भवि अमण - नयणघण - जणि-आणंदणं, नमह सिरि-सिद्धचकं जणे अणुदिणं ॥ १ ॥
भमर जिम अमर नमिय- पयपं कथं, पंचवन्नाहि
कंताहि
समलंकियं ।
मणवं छियं,
सिद्धचकं धुणंताण दिंतु सच्चे जिणा विविध - सुहसंपयं ॥ २॥ अम्मि जिणगुरुय - गणधारगवन्निया, सिद्धचक्कस्स नवपयह बहुमनिया | सोय नीय- लोयकमलदल - बोहंकरो, होउ जयवंत सिद्धत - नव- दिणयरो ॥३॥
||४||
( भाभर ज्ञानभंडार )
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org