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संस्कृत विभाग-२
(१) श्री सामान्यजिन-स्तुतिः विपुलविमलकलसकलकमलदलनयनयुगलवरममितकलं, रुचिररुचिर-करकमनतुहिनकर-सुरगज-समगुण-गणममलम् । फणिफण. पृथुमणि गुरुतर-शुचि रुचि-मतिशय-विलसन-महिमधरं, विकसिर सरसिजवदन-विजितविधुमभिमतममिनुत जिनपगुरुम् ॥११॥ अनुपमससममबहुलसलिलभरविदलितकलिमलपटलमलं, शुभततितरुभरसजलजलदनिमम विकलकविकुल-विनुतकुलम् । शितिवसुवसुचय-तरुण-तरणिकरशशधर-घनधन - कमनरुचं, भजत भजत जिनचरणनलिन-युगमनुदेवमिहभुवि दलित
शुचम् ॥२॥ मधुरमधुर-तरविशद-सुपदपदमवितथमतिनुत - मति-विभवं, भवभव-परिभव-विषय-विषम-विषजलनिधि-विघटन-कल
समवम् । विततकुमततमितिमिर-तिमिरभरविकट- चरटभट -दिवसकर, विनमत जिनमत-मवनत-घनजनमुदित - कुमुदवन-सितगु
करम् ॥३॥ सुरवरपरदृढसुदृढगगनचरशुभकर-परिकर-परिकलिता, सुघटित-जटित-मुकुट मणिकरभर-निरुपमलवणिम-गरिमयुता। अगणितमदशठकमठकमठहठघनघनरिपुजनकदनपरा, जयति जगति जय-सुविनयनययुतसधरघरणिधर युवतिवरा ॥४॥
(पू. जंबून. म. डभोई)
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