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केनापि जिग्ये नहि मोहभूपः,
प्रकाममुद्दामतमस्वरूपः । विना भवन्तं भुवनैकवीरं, मायारसादारणसार सीरम् वन्दारुवृन्दारक - वृन्दवन्धं, विदारणेशम् |
प्रत्युद्दसन्दोह कल्याण - कोटी-करणैकशूरं,
नमामि वीरं गिरिसार - धीरम् ||४||
( प्राच्य विद्यामंदिर, सोसायटी- अमदाबाद )
(२४) ( उपजातिः ) सुचण्डिमाडम्बरपञ्चवाणदावोरुदाद्दानलवारिवाहम् | संसारकारालय भङ्गसजं,
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देवं - महावीरमहं - नमामि दुरन्त - रागोदयमत्त - दन्ति
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स्तुति तरंगिणी
हिंसाकुरङ्गारि - समानताऽढथाः । गुणावलिं - केवलिपुङ्गवा - मे, निरन्तराया बहुमानभाजः उद्दामवामावह देहमेघनीहार - संहार - विमोक्ष - बिम्बम् ।
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॥३॥
॥१॥
॥२॥
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