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________________ संस्कृत विभाग- २ (१९) वर्धमानाक्षर - गुप्त-युक्त श्री - महावीर - स्तुतिः ( आर्याछन्दः ) परसमय - तिमिर - तरणिं, भवसागरवारि-तरणवरतरणिम् । रागपगग - समीरं वंदे देवं महावीरम् ॥ १॥ निरुद्ध - संसार - निहारेका रिदुग्न्तभावारि-गणा निकाम्म् निरन्तरं केवलिससमा वो, भवावहं मोहभरं हरन्तु ॥ २ सन्देहकारि-कुनयागम- रूढ-गूढ़ेंसम्मोहपङ्क - हरणामलवारि-पूरम् । संसार - सागर - समुत्तरणोरुनावं, वीरागमं परमसिद्धि-करं नमामि परिमलभर - लोलालीढ - लोलालि - मालावैरकमल - निवासे हार- निहार-मासे । अविरल - भत्रकारा - गार - विच्छित्तिकारं, 11811 कुरु कमल - करे मे मङ्गलं देवि सारम् ( आ श्री सिद्धिस्र. शास्त्र संग्रह अहमदाबाद, उदयसागर गणि सुत भाण लिखितं १५८५ पो. शु. ९ रवि . ) (२०) ( कामक्रीडा ) - श्री कर्तारं पुण्यागारं विश्वोदारं सत्सारं, विध्वस्तारं कान्ताकारं सालङ्कारं ज्ञातारम् । १. विहार २ भो ३. कार ४. गाढ ५. sमल ६. देहि • Jain Education International १२९ For Private & Personal Use Only !!३!" www.jainelibrary.org
SR No.003304
Book TitleStuti Tarangini Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarsuri
PublisherLabdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan
Publication Year
Total Pages446
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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