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________________ स्तुति तरंगिणी सर्वज्ञातपुत्र--क्रमनिहितमनःशङ्करे दत्तसाते, वाणी-संदोह-देहे भव विरहवरं देहि से देवि सारम् ॥४॥ (आ, पुण्यवि.) संसार-रत्नाकर-लब्धतीरं, सज्ज्ञान-विज्ञान-सदाऽऽम्रकीरम् । नमन्नराणां वृजिनकनीरं, नमामि वीरं गिरिसार-धीरम् ॥१॥ यस्माद् भवन्ति धनधोरणि-पूरितानि, सत्पुत्र-सज्जन-जन-व्रज-संयुतानि । भव्य-व्रजस्य भवनानि विराजितानि, कामं नमामि जिनराजपदानि तानि ॥२॥ स्फूर्जबुद्धि-प्रधन-परमान्द-सन्दोहकी, शान्तिर्यस्माद् भवति विपुला विश्वविश्वे प्रशस्या । पुण्य-श्रेणी-विमल-कमला-तातरूपं तमेकं, सारं वीरागमजलनिधि सादरं साधु सेवे ॥३॥ अज्ञानध्वान्त विध्वंसननिपुणपरावान-मन्त्र-प्रधाने, . प्रोद्यन्मन्दार-पुष्प-प्रकर-विरचित--स्फारहारेण रम्ये ।। गीर्वाणाधीश-सेव्यक्रम-कगलयुगे सर्व-लोकप्रकाशे, वाणी-संदोह-देहे भवाविरहवरं देहि मे देवि सारम् ॥४॥ (आ. पुण्यवि. म.) Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org ww
SR No.003304
Book TitleStuti Tarangini Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarsuri
PublisherLabdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan
Publication Year
Total Pages446
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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