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________________ स्तुति तरंगिणी क्वचिदर्शितद्राक प्रवचनवचनचातुरी - रञ्जितानेकभूपा स्वकीय-स्वरूपा क्वचित्सृष्टसङ्गीत- वीणा - विनोदा क्वचिद् दत्तदेवेशसत् सभ्यमोदा, क्वचिन्निर्मितानुत्तरादिशा, क्वचित्पोडशाचिस्तूगत्पार्जिताचिभरा कुवचन वचन - दर्शना जाततोषा, क्वचित्पादयोः पाततो नुन्नरोषा कवचिनाकनाथासनासीनदेहात्क्वचिभागने तुईठात्पूरितेहा, जिनाधीश्वर - प्रोदितद्वादशाङ्गश्रुताधीश्वरी भारती देवता सेवतामर्हतः || ४ || ( श्री मुक्तिवि. गणी जैन लायब्रेरी - छाणी ) ११८ (७) , आनन्द - कन्दोद्गम - वारिवाहं, निवारिता - शेष - भवारिवाहम् । विध्वस्त- मोह - प्रति - वीरवीरं, नमामि वीरं गिरि-- सार - धीरम् संसार-- वारिधि - पतञ्जन - तारणैकपोतोपमानि जनतावनती - कृतानि । पुष्णन्ति यानि यमिनाममिवात्म-पुष्टि, कामं नमामि जिनराज - पदानि तानि जीवाजीवादिक-- नवपद - प्राज्य - मुक्ता - मणीनां, स्थानं दान - प्रमुख - तटिनी - पूर - पूर्णावतारम् | सम्यग् नानानयचय महल्लोल - कल्लोल -- मालं, सारं वीरागमजलनिधिं सादरं साधु सेवे ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ॥ १॥ ॥२॥ www.jainelibrary.org
SR No.003304
Book TitleStuti Tarangini Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarsuri
PublisherLabdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan
Publication Year
Total Pages446
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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