SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्तुति तरंगिणी सेवितपार्श्व ! शं दिश पार्श्व ! मौलि वरांग! तार-तराङ्ग ! ॥४॥ (पं. दर्शनवि, म. वडोदरा) भुवन - वलय - वर्या मेदिनी हर्षपूर्याः सुरवर - कृतसेवः सार्व- वामेय - देवः । निवसति बत यत्र ध्वस्त - मानक - शत्रुः फणपति - फण - रत्नद्योत - धूनधुरत्नः ॥१॥ विबुध -- वरसपान , पापपकोष्णसूर्यान् । सकल - जिनवरेन्द्रान् पुण्यपाथोधिचन्द्रान् नमत भुवन - हारान् ध्वस्तमार प्रचारान् शिवपुर - पथ - दीपान् मोहमल्लप्रतीयान् ॥२॥ जिनपतिमतमेकं जात तच्चातिरेक वरशमरससारं छिन्न - मोहान्धकारम् । शिवपदस्थतुल्यं कामभूमीशशल्यं प्रणमत सुर-कुम्भं सत्य-भास्वद्विदम्भम् ॥३॥ नतजिन - पद - पद्मा देवता पातु पया सकल - भविक - लोकं वीतनिः शेषकोयम् प्रसृमरभयविता - धर्मपापप्रतिमा कुवलयदलवर्णा कुण्डलोद्भासिकर्णा ॥४॥ (पू. जंबुसू. म. डभोई) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003304
Book TitleStuti Tarangini Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarsuri
PublisherLabdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan
Publication Year
Total Pages446
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy