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संस्कृत विभाग-२
(१०)
नमत कनकरुचिमविरल गुणशु चिसहितमुपशममरभरितं, मनुजदनुजसुरपरिकरपरिवृतममलवरणं विदितचरितम् । वृषभ - मृषभ - जिनाति - प्रति - निज-मति - जितसुर- गुरु मशरणशरणं, दुरित निकर हरम मृतज सुखकरमवनतजन भवभयहरणं वितत - नियत - घर - सकल - भविक - गण - पृथु - भवजल - निधि
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वहनसमाः,
प्रसृमरदृढतर - कुमत - तिमिर - भर - मथन - विजित - दिनकर
सुषमाः । बहु- मुनिजन- हृदय नयन- कुमुद-मद-करण - रजनिपति सदृश - जिनाः, सुविपुलमभिमत - मभिनवमतुल- कुशलमपगतवृजिनाः ||२||
प्रददतु
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जिन - वर-वर - मुख भणितमचल - सुखकरणमसम - गणधर - निचितं निकट - कपट- कुट - विकट - लकुट - समम - शुभ - हरण मुरुगम - निचितं ।
विषय-विषम-विषधर - विषहर - वर- मणि- तुलमघतरुन ति दहनं, दिशतु परम-पद- मपहृतजनन - गद-जरण - मृतिमपचित- भवगद्दनम् ||३||
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