SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 498
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अज्ञातकर्तृ-विविधतीर्थस्तुतयः महंति जे भावजुआ तिसंझं, जिणिंदरायं गयरायदोषं । लीलाइ ते मुत्तिसिरीविवाहं, करंति भावारिनिवारणेण ॥ १ ॥ जइ अस्थि सिद्धित्थिसुहे मणो ता, उसहाइ वीरंतजिणे थुणेह । हेमिंदुनीलंजणरत्तवण्णे, नित्थिण्णविस्थिण्णभवण्णवे अ ॥२॥ सट्ठीअ लक्खा गुणनऊ अ कोडी, भवणेसु कोडीण सयाई तेर । असंखया जोइवणेसु बिंबे, नमेह भत्तिब्भरनिब्भरंगा ॥३॥ नइ-बास-वेअड-वक्खार-कुण्ड-गयदंत-मेरु-दहमाइठाणे । बिंबाइ वंदे तिरिअं तिलक्खा, सहसेगनउआ सयतिण्णि वीसं ॥४॥ पडिमाण कोडीण सयं च एगं, बावन्नकोडी चउनउअ लक्खा । चउचत्त सहसाइं सयाइ सत्ता, सद्धा विमाणेसु नमामि उड़े ॥५॥ सव्वग्गकोडी पनरस्सयाई, दुचत्त कोडी अडवण्ण लक्खा। छत्तीस सहस्सा असीआइ निचं, बिंबाइ वंदे भुवणत्तयमि ॥६॥ नंदीसरे अट्ठमए सुदीवे, निच्चेसु बावन्नजिणालएसु । सिरिवद्धमाणोसहवारिसेण-चंदाणणक्खे पणमामि नाहे ॥७॥ निम्मावियम्मी भरहेण रण्णा, भत्तीइ अट्ठावयनामतित्थे। वण्णप्पमाणंकमणुन्न बिंबे, रिसहाइ चउवीसजिणे थुणामि ॥८॥ अजिआइवीसं जिणचन्दनाहा, सिवं गया जत्थ निसिद्धभत्ता । सुपव्वकयथूभगणाभिनंदो, नंदउ स सम्मेअगिरी सयावि ॥९॥ जयउ चिरं तं भुवर्णमि तित्थं, सित्तुंजयं सव्वभिहापहाणं । जहि संथुओ आइजिणो जणाणं, दुहा महाणंदसिरिं करेइ ॥१०॥ वयनाणसिद्धिप्पमुहूसवेहिं, जं पाविअं नेमिजिणेसरस्स। तं भव्वजीवा सिवसुक्खहेर्छ, झाएह उजितगिरि सुतित्थं ॥ ११ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003302
Book TitleStuti Tarangini Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarsuri
PublisherLabdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan
Publication Year
Total Pages564
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy