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________________ सम्मति डा० सुदर्शनदेव आचार्य द्वारा लिखित 'पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् नामक अष्टाध्यायी की व्याख्या देखने को मिली। संस्कृत भाषा अपने नाम के अनुरूप संस्कृत अर्थात् देवों की भाषा है। यह समस्त भारतीय भाषाओं की जननी है। इस भाषा का ज्ञान बिना व्याकरणशास्त्र के नहीं होता है। व्याकरणशास्त्र नव्य-विधाओं में विभक्त होकर भी पाणिनीय मूलक ही है अर्थात् महर्षि पाणिनि द्वारा निर्मित व्याकरणशास्त्र ही मुख्य है और सर्वोपरि है। उसके आद्योपान्त समझने के लिये अष्टाध्यायी का क्रमश: अध्ययन करना आवश्यक ही नहीं अपितु अपरिहार्य है। __ प्रस्तुत ग्रन्थ में व्याकरणशास्त्र को सरल तथा सूत्रशैली से समझाकर विद्वान् लेखक ने छात्रों का परमहित सम्पादन किया है जिसके विषय में यह कहा गया है कि 'कष्टं व्याकरणम्, कष्टतराणि च सामानि' अर्थात् व्याकरणशास्त्र का पढ़ना अतीव कठिन है और साम का पढ़ना तो उससे भी अधिक कठिन है। इस ग्रन्थ में सूत्र, पदच्छेद, विभक्ति, समास, अनुवृत्ति, अन्वय, अर्थ, उदाहरण, संस्कृतभाषा में लिखे गये हैं। आर्यभाषा नामक टीका में सूत्रों और उदाहरणों का अर्थ हिन्दी भाषा में दिया गया है। उदाहरणों की कच्ची सिद्धि देकर उन्हें समझाया गया है। इस शैली से सूत्रार्थ सरलतया हृदयंगम हो जाता है। विद्वान् लेखक ने अपने विद्यार्थीकाल में जो प्रशस्य श्रम किया था, उस समय छात्रों के सामने जो कठिनाइयां आती रही हैं, उन सभी को सुसरल बना दिया है। __आशा है व्याकरणशास्त्र के छात्र तथा जिज्ञासु इससे अवश्य लाभान्वित होंगे और इससे अवश्य लाभ उठाकर लेखक का भी उत्साहवर्धन करेंगे। -राजवीर शास्त्री भूपेन्द्रपुरी, मोदीनगर, गाजियाबाद (उ०प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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