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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०- ( हन्) प्र ( व . ) - आवां प्रहण्वः, प्रहन्वः । परि-आवां परिहण्वः, परिहन्वः । प्र (म: ) - वयं प्रहण्मः प्रहन्मः । परि-वयं परिहण्मः परिहन्मः । आर्यभाषाः अर्थ - ( संहितायाम् ) सन्धि - विषय में (उपसर्गस्य ) उपसर्ग के (रषाभ्याम्) रेफ और षकार से परवर्ती (अत्पूर्वस्य) अकार पूर्ववाले ( हन्तेः ) हन् धातु के (नः) नकार के स्थान में (वमो:) वकार और मकार परे रहने पर (वा) विकल्प से (गः) कार आदेश होता है। ७२४ उदा०- - ( हन्) प्र ( व ) - आवां प्रहण्वः, प्रहन्वः । हम दोनों प्रहार करते हैं। परि-आवां परिहण्वः, परिहन्वः । हम दोनों परिहार करते हैं । प्र (म) - वयं प्रहण्मः, प्रहन्मः । हम सब प्रहार करते हैं । परि-वयं परिहण्मः, परिहन्मः । हम सब परिहार करते हैं। " सिद्धि-प्रहण्वः । यहां प्र-उपसर्गपूर्वक हन हिंसागत्यो:' ( अदा०प०) धातु से 'लट्' प्रत्यय है । लकार के स्थान में 'वस्' आदेश है । 'अदिप्रभृतिभ्यः शप:' ( २/४ /७२ ) से 'शप्' का लुक् है। इस सूत्र से प्र-उपसर्ग के रेफ से परवर्ती 'हन्' धातु के अकारपूर्वी कार के स्थान में वकार परे रहते णकार आदेश होता है। विकल्प-पक्ष में णकार आदेश नहीं है-प्रहन्वः । परि-उपसर्ग में परिहण्वः, परिहन्व: । मस्-प्रत्यय में - प्रहण्मः, प्रहन्मः । परिहण्मः, परिहन्मः । णकारादेश: - (२३) अन्तरदेशे | २३ | प०वि०-अन्तः अव्ययपदम्, अदेशे ७ । १ । स०-न देश इति अदेश:, तस्मिन् - अदेशे (नञ्तत्पुरुषः ) । अनु० - संहितायाम्, रषाभ्याम् नः, णः, हन्तेः, अत्पूर्वस्येति चानुवर्तते । अन्वयः-संहितायाम् अन्तर् - राद् अत्पूर्वस्य हन्तेर्नो ण:, अदेशे । अर्थः-संहितायां विषयेऽन्तः शब्दस्य रेफात् परस्याऽत्पूर्वस्य हन्तेर्नकारस्य स्थाने णकारादेशो भवति, अदेशेऽभिधेये । I उदा०- (हन् ) अन्त:- अन्तर्हण्यते । अन्तर्हणनं वर्तते । आर्यभाषाः अर्थ- (संहितायाम् ) सन्धि - विषय में (अन्तः) अन्तर् शब्द के (रात्) रेफ परवर्ती (अत्पूर्वस्य) अकार पूर्ववाले ( हन्तेः) हन् धातु के (नः) नकार के स्थान में (ण) णकार आदेश होता है (अदेशे ) यदि वहां देश का कथन न हो। उदा०- - (हन् ) अन्तर् - अन्तर्हण्यते । वह मध्य में बाधित किया जाता है । अन्तर्हणनं वर्तते । बीच में बाधा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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