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________________ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषाः अर्थ- (संहितायाम् ) सन्धि - विषय में ( पूर्वपदस्य ) पूर्वपद के (रषाभ्याम्) रेफ और षकार से परवर्ती, (एकाजुत्तरपदे) एकाच् उत्तरपदवाले समास में (प्रातिपदिकान्तनुम्विभक्तिषु) प्रातिपदिक के अन्त, नुम् और विभक्ति में विद्यमान (नः) नकार के स्थान में (ण) णकार आदेश होता है। ७१२ उदा०- ( प्रातिपदिकान्त) वृत्रहणौ । वृत्र को मारनेवाले दो इन्द्र । वृत्रहण: । वृत्र को मारनेवाले सब इन्द्र। ( नुम् ) क्षीरपाणि कुलानि । दूध पीनेवाले कुल । सुरापाणि कुलानि । शराब पीनेवाले कुल । (विभक्ति) क्षीरपेण । दूध पीनेवाले से । सुरापेण । शराब पीनेवाले से । यहां 'ण:' की अनुवृत्ति होने पर भी पुन: 'ण' का ग्रहण विकल्प की अनुवृत्ति के निवारण के लिये किया गया है। सिद्धि - (१) वृत्रहणौ। यहां वृत्र- उपपद 'हन हिंसागत्यो:' ( अदा०प०) धातु से 'ब्रह्मभ्रूणवृत्रेषु क्विप्' (३/२/८७ ) से क्विप्' प्रत्यय है । 'क्विप्' प्रत्यय का सर्वहारी लोप होता है। वृत्रहन् + औ इस स्थिति में इस सूत्र से वृत्र पूर्वपद के रेफ से परवर्ती तथा अट्-व्यवायी (अ-ह-अ) प्रातिपदिक के अन्त में विद्यमान एकाच् हन्' के नकार को णकार आदेश होता है । 'जस्' प्रत्यय में - वृत्रहण: । (२) क्षीरपाणि । यहां क्षीर- उपपद 'पा पाने' (भ्वा०प०) धातु से 'आतोऽनुपसर्गे कः' (३1२ 1३) से 'क' प्रत्यय है । 'आतो लोप इटि चं' (६४/६४) से आकार का लोप होता है। क्षीरप+जस् । क्षीरप+शि । क्षरप नुम्+इ ।, इस स्थिति में इस सूत्र से क्षीर पूर्वपद के रेफ से परवर्ती तथा अट् और पवर्ग व्यवायी (अ-पू-आ) एकाच् ‘प' के नुम् के नकार को णकार आदेश होता है। 'नपुंसकस्य झलचः' (७ 1१1७२) से नुम् आगम और ‘सर्वनामस्थाने चासम्बुद्धौ (६।४।८) से दीर्घ होता है। सुरा - पूर्वपद में- सुरापाणि । (३) क्षीरपेण । यहां 'क्षीरप' शब्द से 'स्वौजस०' (४ 1१1२) से 'टा' प्रत्यय है । 'टाङसिङसामिनात्स्या:' (७ 1१1१२) से 'टा' को 'इन' आदेश है। इस सूत्र से क्षीर पूर्वपद के रेफ से परवर्ती तथा अट् और पवर्ग के व्यवायी (अ-प-अ-इ) एकाच् 'प' की 'इन' विभक्ति के नकार को णकार आदेश होता है। सुरा- पूर्वपद में - सुरापेण । णकारादेश: (१३) कुमति च । १३ । प०वि०-कुमति ७।१ च अव्ययपदम्। तद्धितवृत्तिः-कुरस्मिन्नस्तीति कुमान्, तस्मिन् कुमति । 'तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुप् (५। २ । ९४ ) इति मतुप् प्रत्ययः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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