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________________ ६५६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् सिद्धि-परिष्कन्ता। यहां परि-उपसर्गपूर्वक पूर्वोक्त स्कन्द्' धातु से तच्' प्रत्यय है। इस सूत्र से इणन्त परि-उपसर्ग से परवर्ती 'स्कन्द्' धातु के सकार को मूर्धन्य आदेश होता है। विकल्प-पक्ष में मूर्धन्य आदेश नहीं है-परिस्कन्ता। तुमुन् प्रत्यय में-परिष्कन्तुम्, परिस्कन्तम् । तव्यत् प्रत्यय में-परिष्कन्तव्यम्, परिस्कन्तव्यम् । विशेष: पृथक् सूत्र रचना से यहां अनिष्ठायाम्' की अनुवृत्ति नहीं है। अत: निष्ठा में भी विकल्प से मूर्धन्य आदेश होता है-परिष्कण्णः, परिस्कन्नः। परित: गत/शोषित। निपातनम् (२१) परिस्कन्दः प्राच्यभरतेषु।७५। प०वि०-परिस्कन्द: ११ प्राच्यभरतेषु ७।३ । स०- प्राच्याश्च ते भरताश्चेति प्राच्यभरताः, तेषु-प्राच्यभरतेषु (कर्मधारय:)। अन्वय:-प्राच्यभरतेषु परिस्कन्दो निपातनम्। अर्थ:-प्राच्यभरतेषु प्रयोगविषयेषु परिस्कन्द इत्यत्र मूर्धन्याभावो निपात्यते। उदा०-परिस्कन्दः । अन्यत्र परिष्कन्दः। आर्यभाषा: अर्थ-(प्राच्यभरतेषु) प्राच्य देश अन्तर्गत भरत देश के प्रयोग विषय में (परिस्कन्दः) परिस्कन्द इस पद में सकार को मूर्धन्य आदेश का अभाव निपातित है। उदा०-परिस्कन्दः । सर्वत: गमन/शोषणकर्ता। सिद्धि-परिस्कन्दः । यहां परि-उपसर्गपूर्वक पूर्वोक्त स्कन्द्' धातु से नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः' (३।११३४) से पचादिलक्षण 'अच्' प्रत्यय है। परेश्च' (८।३।७४) से सकार को मूर्धन्य आदेश प्राप्त था, अत: इस सूत्र से प्राच्य-भरतदेशीय प्रयोग विषय में मूर्धन्याभाव निपातित किया गया है। विशेष: (१) परिस्कन्द उन दो सैनिकों को कहते थे जो रथ के दोनों ओर पहियों के साथ रहकर दोनों ओर के हमले से रथी का बचाव करते थे (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० १५५)। (२) दक्षिण-पूर्वी पंजाब में थानेश्वर-कैथल-करनाल-पानीपत का भूभाग भरत जनपद था। इसी का दूसरा नाम प्राच्य भरत भी था क्योंकि यहीं से देश के उदीच्य और प्राच्य इन दो खण्डों में सीमायें बंटती थी (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० १५५)। (३) इस उक्त प्राच्य भरत देश में आज भी षकार के स्थान में सकार का उच्चारण प्रचालेत है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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