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________________ ६०४ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ- (संहितायाम्) सन्धि-विषय में (अपदान्तस्य) पदान्त में अविद्यमान (न:) नकार (च) और (म:) मकार को (झलि) झल् वर्ण परे होने पर (अनुस्वारः) अनुस्वार आदेश होता है। उदा०-(नकार) पयांसि । नाना दूध। यशांसि । नाना यश। सीषि । नाना घृत। धनूंषि । बहुत धनुष। (मकार) आक्रस्यते । वह उदय होगा। आचिक्रसते। वह उदय होना चाहता है। अधिजिगांसते । वह अध्ययन करना चाहता है। सिद्धि-(१) पयांसि । पयस्+जस्। पयस्+शि। पयस्+इ। पय नुम् स्+इ। पयन् स्+इ। पयान्स्+इ। पया -स्+इ। पयांसि। यहां पयस्' शब्द से जस्' प्रत्यय है। जश्शसो: शि:' (७।१।२०) से जस् को 'शि' आदेश होता है। नपुंसकस्य झलच:' (७।१।७२) से नुम्' आगम है। सान्तमहत: संयोगस्य' (६।४।१०) से दीर्घ होता है। इस सूत्र से झल् वर्ण (स) परे होने पर नकार को अनुस्वारादेश होता है। ऐसे ही-यशांसि आदि। (२) आक्रस्यति । यहां आड्-उपसर्गपूर्वक क्रमु पादविक्षेपे' (भ्वा०प०) धातु से लृट् शेषे च' (३।३।१३) से लृट्' प्रत्यय है। 'स्यतासी लुलुटो:' (३।१।३३) से 'स्य' विकरण-प्रत्यय है। इस सूत्र से क्रम्' के मकार को झलादि (स) वर्ण परे होने पर अनुस्वार आदेश होता है। 'आङ उद्गमने' (१।३।४०) से आत्मनेपद होता है। (३) आचिक्रसते । यहां आङ्-उपसर्गपूर्वक क्रमु पादविक्षेपे' (भ्वा०प०) धातु से 'धातो: कर्मण: समानकर्तृकादिच्छायां वा' (३।११७) से इच्छा-अर्थ में सन्' प्रत्यय है। इस सूत्र से क्रम्' के मकार को झल् वर्ण (स) परे होने पर अनुस्वार आदेश होता है। अभ्यास-कार्य पूर्ववत् है। (४) अधिजिगांसते। यहां अधि-उपसर्गपूर्वक 'इङ् अध्ययने (अदा०आ०) धातु से पूर्ववत् सन्' प्रत्यय है। इङश्च' (२।४।४८) से 'इङ्' के स्थान में गम्' आदेश है। 'अज्हनगमां सनि' (६।४।१६) से दीर्घ होता है। इस सूत्र से 'गम्' के मकार को झल् वर्ण (स) परे होने पर अनुस्वार आदेश होता है। म-आदेशः (१३) मो राजि समः क्वौ ।२५। प०वि०-म: ११ राजि ७१ सम: ६।१ क्वौ ७।१। अनु०-पदस्य, संहितायाम्, म इति चानुवर्तते। अन्वय:-संहितायां सम: पदस्य म:, क्वौ राजि मः । अर्थ:-संहितायां विषये सम: पदस्य मकारस्य, क्विप्प्रत्ययान्ते राजतो. परतो मकारादेशो भवति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003301
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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