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________________ षष्ठाध्यायस्य प्रथमः पादः तुक-आगमविधिः तुक (१) हस्वस्य पिति कृति तुक्।७१। प०वि०-ह्रस्वस्य ६।१ पिति ७१ कृति ७१ तुक् ११। स०-प इद् यस्य स पित्, तस्मिन्-पिति (बहुव्रीहिः) । अन्वय:-पिति कृति ह्रस्वस्य तुक् । अर्थ:-पिति कृति प्रत्यये परतो ह्रस्वान्तस्य धातोस्तुक्-आगमो भवति। उदा०-अग्निचित् । सोमसुत्। प्रकृत्य। प्रहृत्य । उपस्तुत्य । आर्यभाषा: अर्थ-(पिति) पित् (कृति) कृत्-संज्ञक प्रत्यय परे होने पर (हस्वस्य) ह्रस्वान्त धातु को (तुक्) तुक् आगम होता है। उदा०-अग्निचित् । अग्नि का चयन करनेवाला। सोमसुत् । सोम का सवन करनेवाला (निचोड़नेवाला)। प्रकृत्य । यथावत् करके । प्रहृत्य । प्रहार करके। उपस्तुत्य । प्रशंसा करके। सिद्धि-(१) अग्निचित् । अग्नि+अम्+चि+क्विम् । अग्नि+चि+वि । अग्नि+चि+० । अग्नि+चि तुक्+० । अग्निचित् । अग्निचित्+सु। अग्निचित् ।। अग्निचित्। यहां अग्नि कर्म उपपद होने पर चित्र चयने (स्वा०3०) धातु से 'अग्नौ चे:' (३।२।९१) से क्विप् प्रत्यय है। इस पित् एवं कृत्-संज्ञक प्रत्यय के परे होने पर ह्रस्वान्त चि' धातु को 'तुक्’ आगम होता है। 'हल्याब्भ्यो दीर्घात्' (७।१।६६) से 'सु' का लोप हो जाता है। (२) सोमसुत् । यहां सोम कर्म उपपद होने पर पुत्र अभिषवें' (स्वा०3०) धातु से सोमे सुञः' (३।२।९०) से 'क्विप्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। (३) प्रकृत्य। प्र+कृ+क्त्वा। प्र+कृ+ ल्यप् । प्र+कृ तुक्+य। प्र+कृत्+य। प्रकृत्य+सु। प्रकृत्य+० । प्रकृत्य। यहां प्र-उपसर्गपूर्वक डुकृञ् करणे' (तनाउ०) धातु से समानकर्तृकयो: पूर्वकाले (३।४।२१) से क्त्वा प्रत्यय है। यहां कुगतिप्रादय:' (२।२।१८) से प्रादि-तत्पुरुष समास है। 'समासेऽनञपूर्वे क्त्वो ल्यप् (७।१।३७) से क्त्वा' को ल्यप्' आदेश होता है। इस पित् कृत् प्रत्यय के परे होने पर ह्रस्वान्त कृ' धातु को 'तुक्' आगम होता है। ऐसे ही 'हृञ् हरणे (भ्वा०उ०) धातु से प्रहृत्य और 'ष्टुञ् स्तुतौ' (अदा०उ०) धातु से-उपस्तुत्य।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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