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________________ ६६० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-त्मना देवेभ्य: । त्मना सोमेषु । त्मना=आत्मना इत्यर्थः । आर्यभाषा: अर्थ-(मन्त्रेषु) वेद-मन्त्रों में (आत्मनः) आत्मन् इस (भस्य) भ-संज्ञक (अङ्गस्य) अग के (आदे:) आदि के (आत:) आकार का (लोप:) लोप होता है। उदा०-त्मना देवेभ्यः । त्मना सोमेषु । त्मना=आत्मना। आत्मा केद्वारा। सिद्धि-त्मना। आत्मन्+टा। आत्मन्+आ। ०त्मन्+आ। त्मना। यहां 'आत्मन्' शब्द से 'टा' प्रत्यय है। टा' (आङ्) प्रत्यय परे होने पर इस सूत्र से मन्त्रविषय में 'आत्मन्' शब्द के आदिभूत आकार का लोप होता है। विशेष: पाणिनि मुनि से प्राचीन आचार्यों के व्याकरणशास्त्र में टा' प्रत्यय को 'आङ्' कहा गया है। पाणिनि मुनि ने उसे उसी रूप में यहां ग्रहण किया है। ति-लोपः (१४) ति विंशतेर्डिति।१४२। प०वि०-ति ६१ (लुप्तषष्ठीनिर्देश:) विंशते: ६।१ डिति ७।१। स०-ड इद् यस्य डित्, तस्मिन्-डिति (बहुव्रीहिः)। अनु०-अङ्गस्य, भस्य, लोप इति चानुवर्तते। अन्वय:-विंशतेर्भस्य अङ्गस्य ति ति:} डिति लोपः। अर्थ:-विंशतेर्भस्य अङ्गस्य तिशब्दस्य डिति प्रत्यये परतो लोपो भवति। उदा०-विंशत्या क्रीत:-विंशक: पट: । विंशतिरधिकाऽस्मिन्निति-विशं शतम्। विंशते: पूरण:-विंश: । एकविंशः । आर्यभाषा: अर्थ-(विंशते) विंशति इस (भस्य) भ-संज्ञक (अङ्गस्य) अङ्ग के (ति) ति-शब्द का (डिति) डित् प्रत्यय परे होने पर (लोप:) लोप होता है। उदा०-विंशक: पट: । बीस कापिणों से खरीदा हुआ कपड़ा। विंशं शतम् । वह शत (सौ) कार्षापण कि जिसमें बीस अधिक हैं १००+२०=१२० । विंशः । बीस को पूरा करनेवाला-बीसवां। एकविंशः । इक्कीस को पूरा करनेवाला-इक्कीसवां । सिद्धि-(१) विंशकः । विशति+डुवुन्। विशति+वु। विशति+अक। विंश०अक। विंशक+सु। विंशकः। यहां विंशति' शब्द से 'विंशतित्रिंशद्भ्यां ड्वुन्नसंज्ञायाम् (५।१।२४) से क्रीत-अर्थ में डुवुन्' प्रत्यय है। 'युवोरनाकौ (७।१।१) से 'वु' को 'अक' आदेश होता
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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