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________________ षष्ठाध्यायस्य चतुर्थः पादः ६१५ यहां 'डुदाञ् दाने (जु०उ०) इस घु-संज्ञक धातु से 'आशिषि लिङ्लोटौ (३।३।१७३) से आशीर्वाद अर्थ में लिङ्' प्रत्यय है। ‘यासुट् परस्मैपदेषूदात्तो ङिच्च (३।४।१०३) से यासुट्' आगम होता है। लिङाशिषि (३।४।११६) से आशीर्लिङ् आर्धधातुक है और किदाशिषि (३।४।१०४) से यह कित् भी है। इस सूत्र से आर्धधातुक लिङ्' प्रत्यय परे होने पर 'दा' धातु के अन्त्य आकार के स्थान में एकार आदेश होता है। स्को: संयोगाद्योरन्ते च' (८।२।२९) से यास' के सकार का लोप होता है। ऐसे ही 'मा माने (अदा०प०) आदि धातुओं से- मेयात्' आदि पद सिद्ध होते हैं। एकारादेश-विकल्प: (२३) वाऽन्यस्य संयोगादेः।६८। प०वि०-वा अव्ययपदम्, अन्यस्य ६।१ संयोगादे: ६।१। स०-संयोग आदिर्यस्य स संयोगादिः, तस्य-संयोगादे: (बहुव्रीहिः) । अनु०-अङ्गस्य, आर्धधातुके, घुमास्थागापाजहातिसाम्, ए:, लिङि इति चानुवर्तते। अन्वय:-घुमास्थागापाजहातिसाभ्योऽन्यस्य संयोगादेरमस्य आर्धधातुके लिङि वा ए:। अर्थ:-घु-संज्ञकेभ्यो मास्थागापाजहातिसाभ्यश्चान्यस्य संयोगादेरङ्गस्य आर्धधातुके लिङि प्रत्यये परतो विकल्पेन एकारादेशो भवति । उदा०-स ग्लेयात्, ग्लायात् । स म्लेयात्, म्लायात् । आर्यभाषा: अर्थ-(घुमास्थागापाजहातिसाम्) घु-संज्ञक और मा, स्था, गा, पा, जहाति और सा धातुओं से (अन्यस्य) भिन्न (अङ्गस्य) अङ्ग को (आर्धधातुके) आर्धधातुक (लिङि) लिङ् प्रत्यय परे होने पर (वा) विकल्प से (ए:) एकारादेश होता है। उदा०-स ग्लेयात्, ग्लायात् । वह ग्लानि करे। स म्लेयात्, म्लायात् । अर्थ पूर्ववत् है। सिद्धि-ग्लेयात् । ग्ला+लिङ् । ग्ला+ल। ग्ला+तिप् । ग्ला+यासुट्+ति । ग्लान्यास्+त। ग्लए+याo+त् । ग्लेयात्। यहां ग्लै हर्षक्षये' (भ्वा०प०) धातु से 'आशिषि लिङ्लोटौं' (३।३।१७३) से आशीर्वाद अर्थ में लिङ्' प्रत्यय है। इस सूत्र से पूर्वोक्त घु-संज्ञक आदि धातुओं से भिन्न संयोगादि ग्लै हर्षक्षये' (भ्वा०प०) धातु के अन्त्य आकार को आर्धधातुक लिङ्' प्रत्यय परे होने पर एकारादेश होता है। शेष कार्य दयात्' (६।४।६७) के समान है। ऐसे ही म्लै हर्षक्षये' (भ्वा०प०) धातु से-म्लेयात् ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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