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________________ ५७२ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(स्कन्दि:) स्कन्त्वा। (स्यन्द:) स्यन्त्वा, स्यन्दित्वा । आर्यभाषा: अर्थ-(स्कन्दिस्यन्दोः) स्कन्दि और स्यन्द (अङ्गस्य) अंगों के (उपधायाः) उपधाभूत (नलोप:) नकार का लोप (न) नहीं होता है (क्त्वि) क्त्वा प्रत्यय परे होने पर। उदा०-(स्कन्दि) स्कन्वा । गति करके सूखकर। (स्यन्द) स्यन्त्वा, स्यन्दित्वा । बहकर। सिद्धि-(१) स्कन्त्वा। स्कन्द्+क्त्वा। स्कन्दु+त्वा। स्कन्त+त्वा। स्कन्+त्वा। स्कन्त्वा। यहां स्कन्दिर गतिशोषणयोः' (भ्वा०आ०) धातु से समानकर्तकयो: पूर्वकालें (३।४।२१) से क्त्वा' प्रत्यय है। इस सूत्र से स्कन्द्' के उपधाभूत नकार का क्वा' प्रत्यय परे होने पर लोप नहीं होता है। 'अनिदितां हल उपधाया: क्डिति (६।४।२४) से नकार का लोप प्राप्त था, उसका प्रतिषेध किया गया है। खरिच' (८।४।५४) से दकार को चर् तकार आदेश और झरो झरि सवर्णे (६।४।६४) से पूर्ववर्ती तकार का लोप होता है। ऐसे ही स्यन्दू प्रस्रवणे' (भ्वा०आ०) धातु से-स्यन्त्वा । इस धातु के उदित् होने से 'स्वरतिसूतिसूयतिधूदितो वा' (७।२।४४) से विकल्प से 'इट' आगम होता है-स्यन्दित्वा । इट्-पक्ष में न क्त्वा सेट' (१।२।१८) से क्त्वा' प्रत्यय के कित् न होने से धातु के उपधाभूत नकार-लोप की प्राप्ति नहीं होती है। नलोप-विकल्प: (१०) जान्तनशां विभाषा|३२| प०वि०-जान्त-नशाम् ६ ।३ विभाषा १।१। स०-जोऽन्ते येषां ते जान्ता:, जान्ताश्च नश् च ते जान्तनश:, तेषाम्-जान्तनशाम् (बहुव्रीहिगर्भित इतरेतरयोगद्वन्द्वः)। अनु०-अङ्गस्य, उपधाया:, नलोप:, न, क्त्वि इति चानुवर्तते। अन्वय:-जान्तनशामङ्गानां क्त्वि उपधाया विभाषा नलोपो न। अर्थ:-जकारान्तानां नशेश्चाङ्गस्य क्त्वा प्रत्यये परत उपधाया विकल्पेन नलोपो न भवति । उदा०-(जान्त:) रज्-रक्त्वा, रक्त्वा । भज्-भक्त्वा , भक्त्वा । (नश्) नंष्ट्वा, नष्ट्वा, इट्पक्षे-नशित्वा।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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