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________________ षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः ५०६ अन्वय:-तत्पुरुषे कोस्तृणे चोत्तरपदे कत्, जातौ । अर्थ:-तत्पुरुष समासे कुशब्दस्य स्थाने तृणशब्दे चोत्तरपदे कदादेशो भवति, जातावभिधेयायाम्। उदा०-कुत्सितं तृणमिति कत्तृणम् । कत्तृणा नाम जातिः । आर्यभाषा: अर्थ-(तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (को:) कुशब्द के स्थान में (तृणे) तृण-शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (च) भी (कत्) कत् आदेश होता है (जातौ) यदि जाति अर्थ अभिधेय हो। उदा०-कत्तॄणा नाम जाति: । कत्तृण नामक जाति । कतृण-कुत्सित (निन्दित घासविशेष)। सिद्धि-कत्तृणम् । यहां कु और तृण शब्दों का कुगतिप्रादयः' (२।२।१८) से तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से 'कु' शब्द के स्थान में तृण' उत्तरपद होने पर तथा जाति अर्थ अभिधेय में कत्' आदेश होता है। का-आदेश: (२७) का पथ्यक्षयोः।१०४। प०वि०-का १।१ (सु-लुक्) पथि-अक्षयो: ७।२। स०-पन्थाश्च अक्षश्च तौ पथ्यक्षौ, तयो:-पथ्यक्षयोः (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)। अनु०-उत्तरपदे, कोः, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते । अन्वय:-तत्पुरुषे को: पथ्यक्षयोरुत्तरपदयो: का:। अर्थ:-तत्पुरुष समासे कुशब्दस्य स्थाने पथ्यक्षयोरुत्तरपदयो: परत: का-आदेशो भवति। उदा०-कुत्सित: पन्था इति कापथ: । कुत्सितोऽक्ष इति काक्षः । आर्यभाषा: अर्थ-(तत्पुरुषे) तत्पुरुष समास में (को:) कुशब्द के स्थान में (पथ्यक्षयोः) पथिन् और अक्ष शब्द (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (का:) का आदेश होता है। उदा०-कापथ: । कुत्सित पन्था (मार्ग) काक्ष: । गाड़ी का कुत्सित धुरा। सिद्धि-कापथ: । कु+पथिन्। का+पथिन् । कापथिन्+अ। कापथ्+अ। कापथ+सु। कापथः।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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