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________________ षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः ५०७ (२) अन्यदीयः। यहां अन्य शब्द से गहादिभ्यश्छ:' (४।२।१३७) से भव-अर्थ में 'छ' प्रत्यय है। इस सूत्र से षष्ठी और तृतीया विभक्ति से रहित अन्य शब्द को छ' प्रत्यय परे होने पर दुक् आगम होता है। 'आयनेय०' (७।१।२) से छ' के स्थान में 'ईय' आदेश होता है। दुगागम-विकल्प: (२३) अर्थे विभाषा|१००। प०वि०-अर्थे ७।१ विभाषा ११। अनु०-उत्तरपदे, अषष्ठ्यतृतीयास्थस्य, अन्यस्य, दुक् इति चानुवर्तते । अन्वय:-अषष्ठ्यतृतीयास्थस्याऽन्यस्याऽर्थे उत्तरपदे विभाषा दुक् । अर्थ:-अषष्ठीस्थस्यातृतीयास्थस्य चान्यशब्दस्य अर्थशब्दे उत्तरपदे परतो विकल्पेन दुगागमो भवति । उदा०-अन्यस्मै इदमिति अन्यदर्थम्, अन्यार्थम् । आर्यभाषा: अर्थ-(अषष्ठ्यतृतीयास्थस्य) षष्ठी और तृतीया विभक्ति से रहित (अन्यस्य) अन्य शब्द को (अर्थ) अर्थ (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (विभाषा) विकल्प से (दुक्) दुक् आगम होता है। उदा०-अन्यदर्थम्, अन्यार्थम् । अन्य के लिये। सिद्धि-अन्यदर्थम् । यहां अन्य और अर्थ शब्दों का चतुर्थी तदर्थार्थबलिहितसुखरक्षितैः' (२।१।३६) से चतुर्थी तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से षष्ठी और तृतीया विभक्ति से रहित अन्य शब्द को अर्थ उत्तरपद होने पर दुक आगम होता है। विकल्प पक्ष में दुक् आगम नहीं है-अन्यार्थम् । कत्-आदेश: (२४) कोः कत् तत्पुरुषेऽचि।१०१। प०वि०-को: ६।१ कत् ११ तत्पुरुषे ७।१ अचि ७।१। अनु०-उत्तरपदे इत्यनुवर्तते। अन्वय:-तत्पुरुषे कोरचि उत्तरपदे कत्। अर्थ:-तत्पुरुष समासे कुशब्दस्य स्थानेऽजादौ शब्दे उत्तरपदे परत: कदादेशो भवति। उदा०-कुत्सितोऽज इति कदज: । कदश्व: । कदुष्ट्र:। कदन्नम्।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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