________________
षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः
५०५ उदा०-(द्वि) द्वीपम् । भूमि का वह भाग जिसके दोनों ओर जल हो वह-द्वीप। (अन्तर्) अन्तरीपम् । भूमि का एक टुकड़ा जो किसी समुद्र या खाड़ी के भीतर तक चला गया हो वह-अन्तरीप। (उपसर्ग) समीपम् । जिसमें जल संगत हो वह-समीप। वीपम् । जिसमें जल विगत हो वह-वीप। नीपम् । जिसमें जल निगत हो वह-नीप।
सिद्धि-द्वीपम् । यहां द्वि और अप् शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे' (२।२।२४) से बहुव्रीहि समास है। इस सूत्र से 'द्वि' शब्द से परे 'अप्' उत्तरपद को ईकार आदेश होता है और वह 'आदे: परस्य' (१।११५३) के 'अप्' के आदिम अल् अकार के स्थान में होता है। ऐसे ही-अन्तरीपम्, आदि। ऊत्-आदेश:
(२१) ऊदनोर्देशे।६८। प०वि०-ऊत् ११ अनो: ५ ।१ देशे ७।१ । अनु०-उत्तरपदे, अप इति चानुवर्तते। अन्वय:-अनोरप उत्तरपदस्य ऊत्, देशे। अर्थ:-अनो: परस्याप उत्तरपदस्य ऊकार आदेशो भवति, देशेऽभिधेये। उदा०-अनुगता आपो यस्मिन् स:-अनूपो देश: ।
आर्यभाषा: अर्थ-(अनो:) अनु शब्द से परे (अप:) अप् (उत्तरपदस्य) उत्तरपद को (ऊत्) ऊकार अदेश होता है (दशे) यदि वहां देश अर्थ अभिधेय हो।
उदा०-अनूपो देश: । जल का समीपवर्ती देश।
सिद्धि-अनूपः। यहां अनु और अप शब्दों का 'अनेकमन्यपदार्थे (२।२।१९) से बहुव्रीहि समास है। इससे अनु शब्द से परे अप शब्द को देश अभिधेय में ऊकार आदेश होता है और यह 'आदे: परस्य' (१११ १५३) से अप के आदिम अल अकार के स्थान में होता है। दुक-आगम:(२२) अषष्ठ्यतृतीयास्थस्यान्यस्य दुगाशीराशाऽऽ
स्थितोत्सुकोतिकारकरागच्छेषु।१६। प०वि०-अषष्ठी-अतृतीयास्थस्य ६१ अन्यस्य ६१ दुक् ११ आशिस्-आशा-आस्थित-उत्सुक-ऊति-कारक-राग-छेषु ७।३। ___ स०-न षष्ठीति अषष्ठी, न तृतीयेति अतृतीया। अषष्ठी च अतृतीया च ते अषष्ठ्यतृतीये, तयो:-अषष्ठ्यतृतीययो:, अषष्ठ्यतृतीययोस्तिष्ठतीति
सद्धि-अनूपः । यहां अनु और अप शब्दों का 'अनेका