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________________ ४६६ षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः ईदृक्, ईदृश: और कीदृक्, कीदृश: यहां व्युत्पत्तिमात्र के लिये विग्रह किया जाता है, विग्रहवाक्य से अवयवार्थ उपदर्शित नहीं होता है क्योंकि ये रूढि शब्द है। यहां वतु' प्रत्यय है, अत: इसका उत्तरपद के साथ योग नहीं है। सिद्धि-(१) ईदृक् । यहां इदम् और दृक् शब्दों का उपपदमतिङ् (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से इदम् के स्थान में दृक्’ उत्तरपद होने पर 'ईश्' आदेश होता है। आदेश के शित् होने से यह अनेकाशित् सर्वस्य' (१।१।५५) से सवदिश किया जाता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-ईदशः । (२) इयान्। यहां इदम् शब्द से किमिदंभ्यां वो घ:' (५।२।४०) से वतुप प्रत्यय है। इस सूत्र से इदम् के स्थान में वतुप् प्रत्यय परे होने पर 'ईश्' आदेश होता है। पूर्वोक्त सूत्र से 'वतुप' के 'व' को 'घ' आदेश और 'आयनेयः' (७।१।२) से 'घ' को 'इय' आदेश होकर यस्येति च (६।४।१४८) से 'ईश्' के ईकार का लोप होता है। प्रत्यय के उगित् होने से उगिदचां सर्वनामस्थानेऽधातोः' (७।१।७०) से नुम् आगम और सर्वनामस्थाने चासम्बुद्धौः' (६।४।८) से उपधा को दीर्घ होता है। (३) कीदृक् । यहां किम् और दृक् शब्दों का पूर्ववत् उपपदतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से किम् के स्थान में दृक उत्तरपद होने पर की-आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही-कीदृशः। (४) कियान् । यहां किम् शब्द से पूर्ववत् वतुप् प्रत्यय है। इस सूत्र से किम् के स्थान पर वतुप्-प्रत्यय परे होने पर की-आदेश होता है। शेष कार्य 'इयान' के समान है। आकार-आदेश: (१४) आ सर्वनाम्नः।६१। प०वि०-आ १।१ (सु-लुक्) सर्वनाम्न: ६।१ । अनु०-उत्तरपदे, दृक्दृशवतुषु इति चानुवर्तते। अन्वय:-सर्वनाम्नो दृक्श वतुषु उत्तरपदेषु आ: । अर्थ:-सर्वनामसंज्ञकस्य शब्दस्य दृक्दृशवतुषु उत्तरपदेषु परत आकारादेशो भवति। उदा०-(दृक्) तत् पश्यतीति तादृक् । यत् पश्यतीति यादृक् । (दृश:) तत् पश्यतीति तादृश: । यत् पश्यतीति यादृशः। (वतुः) तत् परिमाणमस्य इति तावान् । यत् परिमाणमस्य इति यावान्। आर्यभाषाअर्थ-(सर्वनाम्नः) सर्वनामसंज्ञक शब्द को (दृक्शवतुषु) दृक्, दृश और वतु (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (आ) आकार आदेश होता है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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