SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 506
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः ४८६ ___ “ससंग्रहं व्याकरणमधीयते, इत्येतदुदाहरणं प्रमादादिदानीन्तनैः कुलेखकैलिखितम्, तत्र हि 'अव्ययभावे चाकाले' (६।३।८१) इत्येव सिद्ध: सभाव:” (न्यासकार:)। आर्यभाषा: अर्थ-(ग्रन्थान्ताधिके) ग्रन्थान्त और अधिक अर्थ में (च) भी विद्यमान (सहस्य) सह शब्द के स्थान में (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (स:) स-आदेश होता है। उदा०-(ग्रन्थान्त) सकलं ज्यौतिषमधीते। कालविशेष को कला' कहते हैं, तत्सहचरित ग्रन्थ भी 'कला' कहाता है। वह कलापर्यन्त ज्यौतिष ग्रन्थ को पढ़ता है। समुहूर्तं ज्यौतिषमधीते । वह मुहूर्त विषयपर्यन्त ज्यौतिष ग्रन्थ को पढ़ता है। (अधिक) सद्रोणा खारी। खारी परिमाण द्रोण से अधिक है। समाष: कार्षापण: । कार्षापण सिक्का माष नामक सिक्के से अधिक है। सकाकिणीको माषः। माष नामक सिक्का काकिणी नामक सिक्के से अधिक है। विशेष: (१) कला=चन्द्रमण्डल का १६वां भाग। (२) द्रोण=२०० पल=८०० तोला (१० सेर)। खारी=१६० सेर (४ मण)। कार्षापण=३२ रत्ती चांदी का सिक्का। माष=२ रत्ती चांदी का सिक्का। काकिणी=१/२ रत्ती चांदी का सिक्का। स-आदेश: (३) द्वितीये चानुपाख्ये।८०। प०वि०-द्वितीये ७१ च अव्ययपदम्, अनुपाख्ये ७।१ । स०-उपाख्यायते प्रत्यक्षत उपलभ्यते य: स उपाख्यः, न उपाख्य इति अनुपाख्य:, तस्मिन्-अनुपाख्ये, अनुमेये इत्यर्थः (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-उत्तरपदे, सहस्य, स इति चानुवर्तते । अन्वय:-सहस्य अनुपाख्ये द्वितीये चोत्तरपदे स:।। अर्थ:-सह-शब्दस्य स्थानेऽनुपाख्ये द्वितीये शब्दे उत्तरपदे परत: स-आदेशो भवति। उदा०-अग्निना सह वर्तते इति साग्निः । साग्निधूम: । सवृष्टिर्मेघ: । द्वयोः सहयुक्तयोर्योऽप्रधान: स द्वितीय इति कथ्यते। आर्यभाषा: अर्थ-(सहस्य) सह शब्द के स्थान में (अनुपाख्ये) अनुमान के योग्य (द्वितीये) अप्रधानवाची (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (च) भी (स:)-आदेश होता है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy