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________________ ४७३ षष्टाध्यायस्य तृतीयः पादः विषय: शब्दरूपम् भाषार्थः बहुलवचनान्न फाल्गुनीपौर्णमासी फाल्गुन की पौर्णमासी। च भवति- जगतीच्छन्द: जगती नामक छन्द। आबन्तस्य शिलवहम् शिलवह नामक नगर। संज्ञायाम् शिलप्रस्थम् शिलप्रस्थ नामक नगर। बहुलवचनान्न लोमकागृहम् लोमका का घर। च भवति- लोमकाषण्डम् लोमका का षण्ड (रोग)। आबन्तस्य अजक्षीरेण जुहोति अजा के दूध से होम करता है। संज्ञायाम् ऊर्णम्रदा: पृथिवी दक्षिणावान् की दक्षिणावत (शा०सं० ऊन के समान मृदु १८।३।४९)। (सुखद) पृथिवी। बहुलवचनान्न ऊर्णासूत्रेण कवयो कवि जन ऊन के सूत से च भवति- वयन्ति । कपड़ा बुनते हैं। आर्यभाषा: अर्थ-(संज्ञाच्छन्दसोः) संज्ञा और वेदविषय में (ड्यापोः) डीप्रत्ययान्त और आप्-प्रत्ययान्त शब्द को (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (बहुलम्) प्रायश: (ह्रस्व:) ह्रस्व आदेश होता है। उदा०-उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृतभाग में लिखा है। सिद्धि-(१) रेवतिपुत्रः। यहां रेवती और पुत्र शब्दों का षष्ठी (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से संज्ञाविषय में डी-प्रत्ययान्त रेवती' शब्द को पुत्र उत्तरपद होने पर ह्रस्व आदेश होता है। ऐसे ही-रोहिणिपुत्र:, भरणिपुत्रः । (२) नान्दीकरः । यहां नान्दी और कर शब्दों का उपपदमतिङ्' (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। नान्दी-उपपद 'डुकृञ् करणे' (तना०उ०) धातु से दिवाविभा०' (३।२।२१) से ट' प्रत्यय है। इस सूत्र से संज्ञाविषय में डी-प्रत्ययान्त नान्दी' शब्द को कर' उत्तरपद होने पर बहुलवचन से ह्रस्व आदेश नहीं होता है। ऐसे ही-नान्दीघोष:, नान्दीविशाल:। (३) कुमारिदा। यहां कुमारी और दा शब्दों का पूर्ववत् उपपदतत्पुरुष समास है। कुमारी-उपपद डुदाञ् दाने (जु०उ०) धातु से 'आतोऽनुपसर्गे कः' (३।२।३) से 'क' प्रत्यय है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजाद्यतष्टा (४।१।४) से टाप्' प्रत्यय होता है। इस सूत्र से वेदविषय में डी-प्रत्ययान्त कुमारी शब्द को 'दा' उत्तरपद होने पर ह्रस्व आदेश होता है। ऐसे ही-प्रफर्विदा ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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