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________________ ४६० पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आकार आदेश नहीं होता है और विकल्प पक्ष में व्यष्टन: संख्यायामबहुव्रीह्यशीत्यो:' (६।३।४७) से आकार आदेश भी होता है-अष्टापञ्चाशत् । हृदादेशः (५) हृदयस्य हृल्लेखयदण्लासेषु।५०। प०वि०-हृदयस्य ६१ हृत् ११ लेख-यत्-अण-लासेषु ७।३। स०-लेखश्च यच्च अण् च लासश्च ते-लेखयदण्लासा:, तेषु लेखयदण्लासेषु (इतरेतरयोगद्वन्द्व:) । अनु०-उत्तरपदे इत्यनुवर्तते। अन्वय:-हृदयस्य लेखयदण्लासेषु उत्तरपदेषु हृद् । अर्थ:-हृदयस्य स्थाने लेखयदण्लासेषु उत्तरपदेषु हृद् आदेशो भवति। अत्र यदणौ प्रत्ययौ लेखलासौ च पदे वर्तेते, अत उत्तरपदस्य यथायोगं सम्बन्धो भवति, एवमन्यत्रापि बोध्यम् । उदा०-(लेख:) हृदयं लिखतीति हृल्लेख: । (यत्) हृदयस्य प्रियमिति हृद्यम्। (अण्) हृदयस्येदमिति हार्दम्। (लास:) हृदयस्य लास इति हृल्लास:। आर्यभाषा: अर्थ-(हृदयस्य) हृदय शब्द के स्थान में (लेखयदण्लासेषु) लेख, यत्, अण् और लास (उत्तरपदे) उत्तरपद होने पर (हृत्) हृत् आदेश होता है। यहां यत्' और 'अण' प्रत्यय हैं तथा लेख और लस पद हैं अत: उत्तरपद शब्द का यथायोग सम्बन्ध होता है। ऐसे ही अन्यत्र भी समझें। उदा०-(लेख) हृल्लेख: । हृदय को काटनेवाला। (यत्) हृद्यम् । हृदय को प्रिय । (अण) हार्दम् । हृदयसम्बन्धी। (लास) हल्लास: । हृदय की कामना। सिद्धि-(१) हल्लेख: । यहां हृदय और लेख शब्दों का उपपदमतिङ् (२।२।१९) से उपपदतत्पुरुष समास है। हृदय शब्द उत्तरपद होने पर लिख अक्षरविन्यासे (भ्वा०प०) धातु से कर्मण्यण' (३।२।१) से अण् प्रत्यय है। यहां लिख' धातु काटने अर्थ में है- “अनेकार्था हि धातवो भवन्ति” (महाभाष्यम्)। इस सूत्र से हृदय के स्थान में लेख शब्द उत्तरपद होने पर हृत् आदेश होता है। तोर्लि (८।४।६०) से तकार को परसवर्ण लकार होता है। (२) हृद्यम् । यहां हृदय शब्द से हृदयस्य प्रियः' (४।४।९५) से 'यत' प्रत्यय है। इस सूत्र से हृदय के स्थान में यत्' प्रत्यय परे होने पर हत्' आदेश होता है।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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