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________________ ४२६ षष्ठाध्यायस्य तृतीयः पादः उदा०-समस्थ: । हानि-लाभ आदि में सम रहनेवाला पुरुष । विषमस्थ: । हानि-लाभ आदि में विषम रहनेवाला पुरुष । कूटस्थ: । स्थिर रहनेवाला । पर्वतस्यः । पर्वत पर रहनेवाला । सिद्धि-समस्थः। यहां सम और स्थ शब्दों का 'उपपदमतिङ्' (२ । २ । १९ ) से उपपद तत्पुरुष समास है। इस सूत्र से भाषा में तथा तत्पुरुष समास में सप्तमी विभक्ति का 'स्थ' शब्द उत्तरपद होने पर अलुक् नहीं होता है । 'समस्थः ' में सम उपपदा गतिनिवृत्तौ (भ्वा०प०) धातु से 'सुपि स्थ:' ( ३1२1४ ) से 'क' प्रत्यय है। ऐसे हीविषमस्थ: आदि । षष्ठी - अलुक् (२१) षष्ठ्या आक्रोशे । २१ । प०वि० - षष्ठ्याः ६ । १ आक्रोशे ७ । १ । अनु०-अलुक्, उत्तरपदे, तत्पुरुषे इति चानुवर्तते । अन्वयः-तत्पुरुषे षष्ठ्या उत्तरपदेऽलुक्, आक्रोशे । अर्थः- तत्पुरुषे समासे षष्ठ्या उत्तरपदेऽलुग् भवति, आक्रोशे गम्यमाने । उदा० - चौरस्य कुलमिति चौरस्यकुलम् । वृषलस्यकुलम् । आर्यभाषाः अर्थ- (तत्पुरुषे ) तत्पुरुष समास में (षष्ठ्याः) षष्ठी विभक्ति का (उत्तरपदे) उत्तरपद परे होने पर (अलुक् ) लुक् नहीं होता है (आक्रोशे) यदि वहां आक्रोश = भर्त्सना अर्थ प्रकट हो । उदा०- -चौरस्यकुलम् | यह चौर का कुल है। वृषलस्यकुलम् | यह नीच का कुल है, ऐसा कहकर आक्रोश प्रकट किया जा रहा है। सिद्धि-चौरस्यकुलम् । यहां चौर और कुल शब्दों का 'षष्ठी' (2121८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से तत्पुरुष समास में तथा आक्रोश (भर्त्सना) अर्थ की प्रतीति में षष्ठीविभक्ति का कुल उत्तरपद होने पर अलुक् होता है। ऐसे हीवृषलस्यकुलम् । षष्ठी - अलुग्विकल्पः (२२) पुत्रेऽन्यतरस्याम् । २२ ।। प०वि०-पुत्रे ७ ।१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम्। अनु० - अलुक, उत्तरपदे, षष्ठ्याः, आक्रोशे इति चानुवर्तते । अन्वयः-तत्पुरुषे षष्ठ्याः पुत्रे उत्तरपदेऽन्यतरस्याम् अलुक्, आक्रोशे ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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