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________________ ३७५ षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः विकासदृशे व्यस्तसमस्ते। अविकारः । असदृशः । अविकारसदृश: । गृहपति । गृहपतिक । वा०- राजाणोश्छन्दसि । अराजा । अनहः । इति चार्वादयः । । आर्यभाषाः अर्थ-(तत्पुरुषे ) तत्पुरुष समास में ( नञः) नञ्-शब्द से परे (कृत्योकेष्णुच्चार्वादयः) कृत्य, उक और इष्णुच् प्रत्ययान्त तथा चारु आदि शब्द (उत्तरपदम्) उत्तरपद में (अन्त उदात्तः) अन्तोदात्त होते हैं। उदा०- (कृत्य) अकर्त्तव्यम् । न करने योग्य कर्म । अकरणीयम् । न करने योग्य कर्म। (उक) अनागामुकम्। जो आगमनशील नहीं है। अनपलाषुकम् । जो दुष्कामनाशील नहीं है। (इष्णुच् ) अनलङ्करिष्णुः । जो अलंकरणशील है। अनिराकरिष्णुः । जो निराकरणशील नहीं है। ( चार्वादि) अचारु: । जो चारु = सुन्दर नहीं है । असाधुः । जो साधु नहीं है। अयोधिक: । जो युद्ध करनेवाला नहीं है। अवदान्यः । जो दानशील नहीं है, इत्यादि । सिद्धि- (१) अकर्तव्यम् । यहां 'डुकृञ् करणें' (तना०3०) धातु से 'तव्यत्तव्यानीयरः' (३ 1१1९६ ) से कृत्य- संज्ञक 'तव्य' प्रत्यय है । तत्पश्चात् नञ् और कर्तव्य शब्दों का 'न' ( २/२/६) से नञ्तत्पुरुष समास होता है। इस सूत्र से तत्पुरुष समास में नञ्-शब्द से परे कृत्य-प्रत्ययान्त कर्त्तव्य उत्तरपद को अन्तोदात्त स्वर होता है । (२) अकरणीयम् । यहां पूर्वोक्त 'कृञ्' धातु से पूर्ववत् 'अनीयर्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है । (३) अनागामुकम्। यहां आङ् उपसर्गपूर्वक 'गम्लृ गतौं' ( वा०प०) धातु से 'लषपतपदस्थाभूवृषहनकमगमशृभ्य उकञ् (३ । २ । १५४) से 'उकञ्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है। ऐसे ही अप-उपसर्गपूर्वक 'लष कान्ती' (भ्वा०प०) धातु से - अनपलाषुकम् । (४) अनलङ्करिष्णुः । यहां अलम् - पूर्वक पूर्वोक्त 'कृञ्' धातु से 'अलङ्कृञ्निराकृञ्०चर इष्णुच्' (३ ।२।१३६ ) से 'इष्णुच्' प्रत्यय है। शेष कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही निर् और आइपूर्वक पूर्वोक्त 'कृञ्' धातु से अनिराकरिष्णुः । (५) अचारु: । यहां नञ् और चारु शब्दों का पूर्ववत् नञ्तत्पुरुष समास है। शेष कार्य पूर्ववत् है । ऐसे ही - असाधुः आदि । अन्तोदात्तविकल्पः (१६) विभाषा तृन्नन्नतीक्ष्णशुचिषु । १६१ । प०वि०-विभाषा १।१ तृन्- अन्न - तीक्ष्ण - शुचिषु ७।३। स०-तृन् च अन्नं च तीक्ष्णं च शुचिश्च ताः - तृन्नन्नतीक्ष्णशुचयः, तासु-तृन्नन्नतीक्ष्णशुचिषु ( इतरेतरयोगद्वन्द्वः) । अनु०-उदात्त:, उत्तरपदम्, तत्पुरुषे, अन्तः, नञ इति चानुवर्तते ।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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