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अन्तोदात्तम्
षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः
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(११) कुसूलकूपकुम्भशालं बिले । १०२ ।
प०वि०-कुसूल-कूप-कुम्भ - शालम् १ । १ बिले ७ । १ । सo - कुसूलं च कूपश्च कुम्भं च शाला च एतेषां समाहार:कुसूलकूपकुम्भशालम् (समाहारद्वन्द्वः) ।
अनु० - पूर्वपदम्, उदात्त:, अन्त इति चानुवर्तते । अन्वयः-बिले कुसूलकूपकुम्भशालं पूर्वपदम् अन्त उदात्तः । अर्थ:-बिल-शब्दे उत्तरपदे कुसूलकूपकुम्भशालानि पूर्वपदानि अन्तोदात्तानि भवन्ति ।
उदा०- (कुसूलम्) कुसूलस्य बिलम् इति कुसूलबिलम् । ( कूपः ) कूपर्बलम् । (कुम्भम्) कुम्भबिलम् । (शाला ) शालार्बलम् ।
आर्यभाषाः अर्थ-(बिले) बिल शब्द उत्तरपद होने पर (कुसूलकूपकुम्भशालम्) कुसूल, कूप, कुम्भ और शाला ( पूर्वपदम् ) पूर्वपद (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होते हैं।
उदा०- (कुसूल ) कुसूलबिलम् । कुठले का मुख। (कूप) कूपर्बिलम् । कूए का मुख । (कुम्भ) कु॒म्भर्बलम् । घड़े का मुख । (शाला) शालार्बलम् । घर का मुख= द्वार ।
सिद्धि - कुसूलबिलम् । यहां कुसूल और बिल शब्दों का 'षष्ठी' ( २/२/८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से बिल-शब्द उत्तरपद होने पर कुसूल पूर्वपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। ऐसे ही - कूपर्बलम् आदि 1
विशेषः (१) कुसूल - बहुत बड़ा लम्बोतरा मिट्टी का बना हुआ कुठला या कोठी जो मनुष्य की ऊंचाई से कुछ ऊंची है और जिसमें १५ से २० मन तक अनाज आ सके।
(२) कूप- इसका तात्पर्य पक्की मिट्टी की बनी हुई लगभग ३ फुट व्यास की उन चकरियों से ज्ञात होता है जिन्हें एक के ऊपर एक रखकर अन्नसंग्रह के लिये कुठले जैसे
बनाया जाता था।
(३) कुम्भ-मिट्टी का बड़ा घड़ा जिसका मुंह अपेक्षाकृत छोटा हो। इसे सिन्ध की ओर गोदी कहा जाता है। इसमें कुसूल से लगभग आधा अन्न आयेगा ।
(४) शाला - इस सूत्र में जिस शाला- बिल का उल्लेख है वह अन्न रखने के भण्डार का आनन या छोटा मुख होना चाहये। अन्न रखने के बखर को ही यहां सूत्रकार ने शाला कहा है (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० १५० -५१) ।