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षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः अन्वय:-पुरे पूर्वपदम् अन्त उदात्त:, प्राचाम्।। अर्थ:-पुर-शब्दे उत्तरपदे पूर्वपदमन्तोदात्तं भवति, प्राचां देशेऽभिधेये।
उदा०-ललाटस्य पुरमिति ललाटपुरम् । काञ्चीपुरम्। शिवदत्तपुरम्। कार्णिपुरम् । नामपुरम्।
आर्यभाषा: अर्थ-(पुरे) पुर-शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है (प्राच्यम्) यदि वहां प्राच्य-भरत के देशविशेष का कथन हो।
उदा०-ललाटपुरम् । ललाट का ग्राम । काञ्चीपुरम् । काञ्ची का ग्राम । शिवदत्तपुरम् । शिवदत्त का ग्राम। कार्णिपुरम् । कार्णि का ग्राम। नार्मपुरम् । नार्म का ग्राम ।
सिद्धि-ललाटपुरम् । यहां ललाट और पुर शब्दों का षष्ठी (२।२।८) से षष्ठीतत्पुरुष समास है। इस सूत्र से प्रागदेशवाची समास में पुर-शब्द उत्तरपद होने पर ललाट पूर्वपद को अन्तोदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-काञ्चीपुरम् आदि।
विशेष: शरावती (नदी) के दक्षिण-पूर्व का देश प्राच्य और पश्चिमोत्तर का उदीच्य कहलाता था। सम्भवत: अम्बाला जिले में बहनेवाली घाघर नदी शरावती कही जाती थी और वही प्राची और उदीची की सीमाओं को अलग करती थी (पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ०४२)। अन्तोदात्तम्
(६) अरिष्टगौडपूर्वे च।१००। प०वि०-अरिष्ट-गौडपूर्वे ७१ च अव्ययपदम् ।
स०-अरिष्टं च गौडश्च तौ-अरिष्टगौडौ, अरिष्टगौडौ पूर्वी यस्मिन् स:-अरिष्टगौडपूर्वः, तस्मिन्-अरिष्टगौडपूर्वे (इतरेतरयोगद्वन्द्वगर्भितबहुव्रीहिः)।
अनु०-पूर्वपदम्, उदात्त:, अन्त:, पुरे इति चानुवर्तते। अन्वय:-अरिष्टगौडपूर्वे पुरे पूर्वपदम् अन्त उदात्त:।
अर्थ:-अरिष्टगौडपूर्वे समासे पुर-शब्दे उत्तरपदे पूर्वपदमन्तोदात्तं भवति।
उदा०- (अरिष्टम्) अरिष्टस्य पुरम् इति अरिष्टपुरम्। (गौडः) गौडस्य पुरम् इति गौडपुरम्।।
आर्यभाषा: अर्थ-(अरिष्टगौडपूर्वे) अरिष्ट और गौड शब्द पूर्वपदवाले समास में (पुरे) पुर-शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है।
उदा०- (अरिष्ट) अरिष्टपुरम् । अरिष्ट का ग्राम। (गौड) गौड़पुरम् । गौड का ग्राम।