________________
३१७
३१७
षष्टाध्यायस्य द्वितीयः पादः अनु०-पूर्वपदम्, उदात्त:, अन्त इति चानुवर्तते। अन्वय:-अकेवले उदके पूर्वपदम् अन्त उदात्त: ।
अर्थ:-अकेवले मिश्रवाचिनि समासे उदकशब्दे उत्तरपदे पूर्वपदमन्तोदात्तं भवति।
उदा०-गुडमिश्रमुदकम् इति गुडोदकम्। तिलोदकम् ।
आर्यभाषा: अर्थ-(अकेवले) मिश्रवाची समास में (उदके) उदक-शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है।
उदा०-गुडोदकम् । गुड़ मिश्रित उदक (जल)। तिलोदकम् । तिल मिश्रित उदक।
सिद्धि-गुडोर्दकम् । यहां गुडमिश्र और उदक शब्दों का वाo-'समानाधिकरणाधिकारे शाकपार्थिवादीनामुपसंख्यानमुत्तरपदलोपश्च' (२।१।५९) से कर्मधारय तत्पुरुष समास और मिश्र उत्तरपद का लोप होता है। इस सूत्र से अकेवल मिश्रवाची समास में उदक शब्द उत्तरपद होने पर पूर्वपद को अन्तोदात्त स्वर होता है।
गुड और उदक शब्दों का एकादेश (गुड+उदकम् गुडोदकम्) होने पर 'स्वरितो वाऽनुदात्ते पदादौ' (८।२।६) से पक्ष में स्वरित स्वर भी होता है-गुडोदकम्, तिलोदकम् । अन्तोदात्तम्
(६) द्विगौ क्रतौ।६७। प०वि०-द्विगौ ७ १ क्रतौ ७।१। अनु०-पूर्वपदम्, उदात्त:, अन्त इति चानुवर्तते। अन्वय:-क्रतौ द्विगौ पूर्वपदम् अन्त उदात्त: ।
अर्थ:-क्रतुवाचिनि समासे द्विगुसंज्ञके शब्दे उत्तरपदे पूर्वपदमन्तोदात्तं भवति।
उदा०-गर्गाणां त्रिरात्र इति गर्गत्रिरात्रः। चरकत्रिरात्रः । कुसुरविन्दसप्तरात्रः।
आर्यभाषा: अर्थ- (क्रतौ) यज्ञविशेषवाची समास में (द्विगौ) द्विगु-संज्ञक शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (अन्त उदात्त:) अन्तोदात्त होता है।
उदा०-गर्गत्रिरात्र: । गर्गजनों का त्रिरात्र नामक यज्ञविशेष । चरकत्रिरात्र: । चरकजनों का त्रिरात्र नामक यज्ञविशेष । कुसुरविन्दसप्तरात्रः । कुसुरविन्दजनों का सप्तरात्र नामक यज्ञविशेष।