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षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः
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उदा०
१- (दीर्घ) कुटीज: । कुटी-झोंपड़ी में पैदा होनेवाला - निर्धन | शमीजः । शमी (जांटी) वृक्ष पर पैदा होनेवाला फलविशेष ( सांगर) । (काश) काशेज: । कास (सरकंडा ) पर पैदा होनेवाला पुष्पविशेष। (तुष) तुषेज: । तुष= झिलके में पैदा होनेवाला चावल । (भ्राष्ट्र) भ्राष्ट्रेजः । भ्राष्ट्र=भाड़ में पकनेवाला भूँगड़ा आदि। (वट) वटेज: । वट वृक्ष पर पैदा होनेवाला फलविशेष ( वरवंटी) ।
सिद्धि-कुटीज: । यह सप्तम्यन्त कुटी शब्द उपपद 'जनी प्रादुर्भावें' (भ्वा०प०) धातु से 'सप्तम्यां जनेर्ड: ' (३।२।९७) से 'ड' प्रत्यय है । वा० - डित्यभस्यापि टेर्लोपः' (६ । ४ । १४३) से 'जन्' के टि-भाग (अन्) का लोप होता है। इस सूत्र से ज-शब्द उत्तरपद होने पर दीर्घान्त' 'शमी' शब्द को आद्युदात्त स्वर होता है। ऐसे ही - शमीज: आदि ।
अन्त्यात्पूर्वमुदात्तम्
(२०) अन्त्यात् पूर्वं बह्वचः । ८३ ।
प०वि०-अन्त्यात् ५ ।१ पूर्वम् १ ।१ बह्वच: ६ ।१ ।
तद्धितवृत्ति:-अन्ते भवम् - अन्त्यम्, तस्मात् - अन्त्यात्, 'दिगादिभ्यो
यत्' (४।३।५४) इति भवार्थे यत्-प्रत्यय: ।
स०-बहवोऽचौ यस्मिन् स बह्रच्, तस्य - बह्वच: (बहुव्रीहि: ) । अनु०- पूर्वपदम्, उदात्त:, जे इति चानुवर्तते । अन्वयः-जे बह्वच: पूर्वपदस्यान्त्यात् पूर्वम् उदात्तम् । अर्थ:-ज-शब्दे उत्तरपदे बह्वचः पूर्वपदस्यान्त्यात् पूर्वमुदात्तं भवति । उदा०-उपसरे जात इति उप॒सर॑ज: । मन्दुरे जात इति म॒न्दुर॑ज: । आमलक्या जात इति आमलकीजः । वडवायां जात इति वडवज: ।
आर्यभाषाः अर्थ- (जे) ज-शब्द उत्तरपद होने पर (बह्वचः ) बहुत अचोंवाले ( पूर्वपदम् ) पूर्वपद का ( अन्त्यात्) अन्तिम अच् से (पूर्वम्) पूर्ववर्ती अच् (उदात्तः) उदात्त होता है।
उदा०-उप॒सरेजः । उपसर=प्रथम गर्भग्रहण पर उत्पन्न हुआ। म॒न्दुरेज: । अश्वशाला में उत्पन्न हुआ। आ॒म॒लकज: । आमलकी वृक्ष पर उत्पन्न हुआ फलविशेष ( आंवला) । वडवजः । वडवा = घोड़ी से उत्पन्न हुआ- खच्चर । अथवा वडवा वेश्या से उत्पन्न हुआ पुरुष ।
सिद्धि-उप॒सरेज: । यहां बहुत अचोंवाला उपसर उपपद 'जनी प्रादुर्भाव' (भ्वा०प०) धातु से 'सप्तम्यां जनेर्ड' (३/२/९७) से 'ड' प्रत्यय है। इस सूत्र से ज- शब्द उत्तरपद होने पर बहुत अचोंवाला 'उपसर' पूर्वपद को अन्तिम अच् से पूर्ववर्ती अच् उदात्त होता है।