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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-(गौ) गोपाल: । गौओं का पाळी। (तन्ति) तन्तिपाल: । गौओं के झुण्ड का पाळी। राजा विराट के यहां रहते समय सहदेव ने अपना बनावटी नाम तन्तिपाल' रखा था। (यव) यवपाल: । जौ के खेत का रखवाला।
सिद्धि-गोपालः । यहां गो उपपद पाल रक्षणे' (चु०प०) धातु से कर्मण्यण' (३।२।१) से 'अण्' प्रत्यय है। इस सूत्र से पाल शब्द उत्तरपद होने पर 'गो' पूर्वपद को आधुदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-तन्तिपाल:, यवपालः ।
आधुदात्तम्
(१६) णिनि।७६। प०वि०-णिनि ७।१। अनु०-पूर्वपदम्, आदि:, उदात्त इति चानुवर्तते। अन्वय:-णिनि: पूर्वपदमादिरुदात्त:।। अर्थ:-णिन्-प्रत्ययान्ते शब्दे उत्तरपदे पूर्वपदमाद्युदात्तं भवति । उदा०-फलानि हरतीति फलहारी । पर्णहारी।
आर्यभाषा: अर्थ-(णिनि) णिन्-प्रत्ययान्त शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (आदिरुदात्त:) आयुदात्त होता है।
उदा०-फलहारी। फलाहार का व्रती। पर्णहारी। पर्णाहार का व्रती।
सिद्धि-फलहारी। यहां फल उपपद होने पर हा हरणे' (भ्वा० उ०) धातु से व्रते (३।२।८०) से णिनि' प्रत्यय है। 'अचो णिति (७१२११५) से हृ' धातु को वृद्धि होती है। इस सूत्र से णिन्-प्रत्ययान्त हारी' शब्द उत्तरपद होने पर फल' पूर्वपद को आधुदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-पर्णहारी।
आधुदात्तम्
(१७) उपमानं शब्दार्थप्रकृतावेव।८०। प०वि०-उपमानम् १।१ शब्दार्थ-प्रकृतौ ७ १ एव अव्ययपदम्।
स०-शब्दार्थ: प्रकृतिर्यस्मिन् स शब्दार्थप्रकृति:, तस्मिन्-शब्दार्थप्रकृतौ (बहुव्रीहि:)।
अनु०-पूर्वपदम्, आदि:. उदात्त:, णिनि इति चानुवर्तते । अन्वय:-शब्दार्थप्रकृतावेव णिनि उपमानं पूर्वपदमादिरुदात्तः ।