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________________ ३०१ षष्ठाध्यायस्य द्वितीयः पादः अर्थ:-प्राचाम्=प्राग्देशवासिनां क्रीडावाचिनि समासेऽकप्रत्ययान्ते शब्दे उत्तरपदे पूर्वपदमायुदात्तं भवति। उदा०-उर्दालकपुष्पभञ्जिका। वीरणपुष्पप्रचायिका । शालभञ्जिका। तालभजिका। आर्यभाषा: अर्थ-(प्राचाम्) पूर्वदेशवासी जनों के क्रीडावाची समास में (अके) अक-प्रत्ययान्त शब्द उत्तरपद होने पर (पूर्वपदम्) पूर्वपद (आदिरुदात्त:) आधुदात्त होता है। __उदा०-उद्दौलकपुष्पभञ्जिका । राजा उद्दालक के वन में रानियों द्वारा फूल तोड़ने की क्रीडा। वीरेणपुष्पप्रचायिका । रानियों द्वारा वीरण (खस) वृक्ष के फूलों को चुनने की क्रीडा। शालभजिका। रानियों द्वारा शाल वृक्ष के शाखाओं को झुकाने की क्रीडा। तालेभजिका । रानियों द्वारा ताल वृक्ष की शाखाओं को झुकाने की क्रीडा।। सिद्धि-उदोलकपुष्पभञ्जिका। यहां उद्दालकपुष्प और अक-प्रत्ययान्त भञ्जिका शब्दों का नित्यं क्रीडाजीविकयोः' (२।२।१७) से नित्य षष्ठीतत्पुरुष समास है। 'भञ्जिका' शब्द में 'भञ्जो आमर्दने' (रुधा०प०) धातु से 'वुल्तृचौं' (३।१।१३३) से ण्वुल् प्रत्यय है और 'युवोरनाकौ' (७।१।१) से 'वु' के स्थान में 'अक' आदेश होता है। स्त्रीत्व-विवक्षा में 'अजाद्यतष्टाप्' (४।१।४) से टाप्-प्रत्यय और 'प्रत्ययस्थात् कात्पूर्वस्यात इदाप्यसुप:' (७।३।४४) से इत्त्व होता है। इस सूत्र से प्राग्देशवासी जनों के क्रीडावाची समास में अक-प्रत्ययान्त भञ्जिका' शब्द उत्तरपद होने पर उद्दालकपुष्प' पूर्वपद को आधुदात्त स्वर होता है। ऐसे ही-वीरणपुष्पप्रचायिका आदि। उद्दालकपुष्पभञ्जिका' आदि क्रीडायें प्राचीदेशवासी जनों की क्रीडायें हैं उदीची देशवासी जनों की नहीं। उनकी जीवपुत्रप्रचायिका' आदि क्रीडायें हैं। आधुदात्तम् (१२) अणि नियुक्ते।७५ । प०वि०-अणि ७।१ नियुक्ते ७ १ । अनु०-पूर्वपदम्, आदि:, उदात्त इति चानुवर्तते। अन्वय:-नियुक्तेऽणि पूर्वपदमादिरुदात्तः । अर्थ:-नियुक्तवाचिनि समासेऽण्-प्रत्ययान्ते शब्दे उत्तरपदे पूर्वपदमायुदात्तं भवति। उदा०-छत्रं धरतीति छत्रधारः । तूणीरधारः। भृङ्गारधारः । कमण्डलुं गृह्णातीति कमण्डलुग्राह:।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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