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________________ २७६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा: अर्थ:-(कर्मधारये) कर्मधारय समास में (क्ते) क्त-प्रत्ययान्त शब्द उत्तरपद होने पर (अनिष्ठा) निष्ठा-प्रत्ययान्त से भिन्न (पूर्वपदम्) पूर्वपद (प्रकृत्या) प्रकृतिस्वर से रहता है। उदाo-श्रेणिकृताः । जो श्रेणिबद्ध नहीं थे उन्हें श्रेणिबद्ध किया गया। ओककृताः । जो बेघर थे उन्हें घरयुक्त किया गया है। पूगकृताः । जो संघ में नहीं थे उन्हें संघ में सम्मिलित किया गया। निधनकृताः । जो गरीब नहीं थे उन्हें गरीब बनाया गया। सिद्धि-(१) श्रेणिकृताः। यहां श्रेणि और क्तान्त कृत शब्दों का 'श्रेण्यादयः कृतादिभिः' (२।१।५९) से कर्मधारय तत्पुरुष समास है। श्रेणि शब्द में वहिश्रिश्रुयुद्धालाहात्वरिभ्यो नित' (उणा० ४५२) से नि' प्रत्यय और वह नित् है। अत: यह नित्यादिर्नित्यम्' (६।१।१९१) से आधुदात्त है। यह इस सूत्र से क्तान्त कृत' शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। (२) ओककृता: । यहां ओक और क्तान्त कृत' शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय तत्पुरुष समास है। ओक शब्द अन्तोदात्त है। इसकी सिद्धि पूर्वोक्त (६।२।३२) है। यह इस सूत्र से क्तान्त कृत शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। (३) पूगकृताः। यहां पूग और क्तान्त कृत' शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय तत्पुरुष समास है। पूग शब्द में छापूजखडिभ्यो गक्' (दश०उणा० ३।६९) से गक् प्रत्यय है। अत: यह प्रत्ययस्वर से अन्तोदात्त है। यह इस सूत्र से क्तान्त कृत शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। (४) निधनकृताः। यहां निधन और क्तान्त कृत' शब्दों का पूर्ववत् कर्मधारय तत्पुरुष समास है। निधन शब्द मध्योदात्त है। इसकी सिद्धि पूर्वोक्त (६।२।३२) है। यह इस सूत्र से क्तान्त कृत शब्द उत्तरपद होने पर प्रकृतिस्वर से रहता है। यहां 'अनिष्ठा' का कथन इसलिये किया है कि यहां पूर्वपद प्रकृतिस्वर न होकृताकृतम्। प्रकृतिस्वरः (४७) अहीने द्वितीया।४७। प०वि०-अहीने ७१ द्वितीया १।१। स०-हीनम्-त्यक्तम्। न हीनमिति अहीनम्, तस्मिन्-अहीने (नञ्तत्पुरुषः)। अनु०-प्रकृत्या, पूर्वपदम्, क्ते इति चानुवर्तते। अन्वय:-अहीने क्ते द्वितीया पूर्वपदं प्रकृत्या।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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