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________________ २१६ पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अनु०-उदात्त इत्यनुवर्तते। अन्वय:-रिति उपोत्तमम् उदात्तम् । अर्थ:-रिति-रित्-प्रत्ययान्ते शब्दे उपोत्तममक्षरमुदात्तं भवति । उदा०-करणीयम्, हरणीयम् । पटुजातीय:, मृदुजातीयः । आर्यभाषा: अर्थ-(रिति) रित्-प्रत्ययान्त शब्द में (उपोत्तमम्) अन्तिम से पूर्ववर्ती अक्षर (उदात्तम्) उदात्त होता है। तीन अथवा उससे अधिक अचोंवाले शब्द में अन्तिम अच् उत्तम कहाता है, और उत्तम के समीपवर्ती अच् को उपोत्तम कहते हैं। उदा०-करणीयम् । करना चाहिये। हरणीयम् । हरना चाहिये। पटुजातीयः। चतुर प्रकार का। मृदुजातीय: । मृदु-कोमल प्रकार का। सिद्धि-(१) करणीयम् । कृ+अनीयर् । कर्+अनीय। करणीय+सु । करणीयम् । यहां 'इकुञ् करणे (तना०उ०) धातु से तव्यत्तव्यानीयरः' (३।१।९६) से अनीयर्' प्रत्यय है। इस प्रत्यय के 'रित्' होने से इस सूत्र से 'करणीयम्' रिदन्त पद उपोत्तम उदात्त होता है। ऐसे हृञ् हरणे' (भ्वा०उ०) धातु से-हरणीयम् । (२) पटुजातीय: । पटु+जातीयर् । पटु+जातीय। पटुजातीय+सु । पटुजातीयः । यहां 'पटु' शब्द से प्रकारवचने जातीयर (५३ १७९) से 'जातीयर्' प्रत्यय है। इस प्रत्यय के रित् होने से इस सूत्र से 'पटुजातीय:' यह रिदन्त पद उपोत्तम उदात्त होता है। ऐसे ही 'मृदु' शब्द से-मुदजातीयः। उपोत्तमोदात्त-विकल्पः (६१) चड्यन्यतरस्याम्।२१५ । प०वि०-चडि ७१ अन्यतरस्याम् अव्ययपदम् । अनु०-उदात्त:, उपोत्तमम् इति चानुवर्तते। अन्वय:-चङि अन्यतरस्यामुपोत्तमम् उदात्तम् । अर्थ:-चप्रत्ययान्ते पदेऽविकल्पेनोपोत्तममक्षरमुदात्तं भवति । उदा०-मा हि चीकरताम्, मा हि चीकरताम्। आर्यभाषा: अर्थ-(चडि) चप्रत्ययान्त पद में (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (उपोत्तमम्) उपोत्तम अक्षर (उदात्तम्) उदात्त होता है। उदा०-मा हि चीकरताम्, मा हि चीकरताम् । उन दोनों ने नहीं कराया। सिद्धि-चीकरताम् । कृ+णिच् । का+इ। कारि। कारि+लुङ्। कारि+चिल्+ल। कारि+च+तस् । कर+अ+ताम। कृ-क+अ+ताम् । च-कर+अ+ताम् । चि-कर+अ+ताम् । ची-क+अ+ताम्। चीकरताम्।
SR No.003300
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1999
Total Pages754
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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