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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् उदा०-आर्शितो देवदत्तः।
आर्यभाषा8 अर्थ- (कर्ता) कर्तृवाची (निष्ठा) निष्ठा-प्रत्ययान्त (आशित:) आशित शब्द (आदिः, उदात्त:) आधुदात्त होता है।
उदा०-आशितो देवदत्तः । देवदत्त ने भोजन किया।
सिद्धि-आशित:। आड्+अश्+क्त। आ+अश्+इद्+त। आ+अश्+इ+त। आशित+सु। आशितः।
यहां आङ्-उपसर्गपूर्वक 'अश भोजने (क्रया०प०) धातु से पूर्ववत् निष्ठा-संज्ञक 'क्त' प्रत्यय है। 'गत्यर्थाकर्मक०' (३।४।७२) से 'क्त' प्रत्यय कर्ता में है। इस सूत्र से कर्तृवाची निष्ठान्त 'आशित' शब्द आधुदात्त होता है। ‘थाथघक्त०' (६।२।१४४) से अन्तोदात्त स्वर प्राप्त था। आधुदात्त-विकल्पः
(५१) रिक्ते विभाषा।२०५। प०वि०-रिक्ते ७।१ विभाषा ११ । अनु०-उदात्त:, आदि:, निष्ठा इति चानुवर्तते। अन्वय:-निष्ठा रिक्ते विभाषा आदिरुदात्त:। अर्थ:-निष्ठान्ते रिक्ते शब्दे विकल्पेनादिरुदात्तो भवति। उदा०-रिक्त:, रिक्तः।
आर्यभाषा: अर्थ-(निष्ठा) निष्ठा-प्रत्ययान्त (रिक्ते) रिक्त शब्द में (विभाषा) विकल्प से (आदिः, उदात्त:) आधुदात्त होता है।
उदा०-रिक्त:, रिक्तः । यह किसी पुरुष की संज्ञा (नाम) है। सिद्धि-रिक्त: । रिच्+क्त। रिच्+त। रिक्+त। रिक्त+सु। रिक्तः।
यहां रिचिर् विरेचने' (रु०उ०) धातु से पूर्ववत् निष्ठा-संज्ञक 'क्त' प्रत्यय है। 'निष्ठा च व्यजनात्' (६ ।१ ।२०१) से नित्य आधुदात्त स्वर प्राप्त था। इस सूत्र से विकल्प-विधान किया गया है। पक्ष में प्रत्ययस्वर से अन्दोदात्त होता है-रिक्त: । 'चो: कु (८।२।३०) से 'रिच्’ के चकार को कुत्व होता है। आधुदात्त-विकल्प:
(५२) जुष्टार्पिते च च्छन्दसि ।२०६। प०वि०-जुष्ट-अर्पिते १।२ च अव्ययपदम्, छन्दसि ७।१। स०-जुष्टं च अर्पितं च ते-जुष्टार्पिते (इतरेतरयोगद्वन्द्वः) ।